उत्तराखंड राजनीति हरिद्वार

अक्टूबर क्रांति की 106 वीं वर्षगांठ पर सिडकुल में जन सभा आयोजित

हरिद्वार।

संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा हरिद्वार के विभिन्न घटक संगठन और प्रगतिशील महिला एकता केंद्र व क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के द्वारा महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति की 106 वीं वर्षगांठ पर सिडकुल हरिद्वार के राजा बिस्कुट कम्पनी के गेट के बाहर धरना स्थल पर एक जन सभा आयोजित हुई।

इससे पहले 2 नवंबर से 7 नवंबर की सुबह तक हरिद्वार के मजदूर बस्तियों (रावली महदूद, सलेमपुर, रोशनाबाद, सुभाष नगर,बीएचईएल आदि) में अक्टूबर समाजवादी क्रांति पर आधारित पोस्टर प्रदर्शनी मजदूरों के मध्य दिखाई गई और प्रगतिशील साहित्य का बुक स्टाल भी लगाया गया। मजदूरों के बीच एक पर्चे का भी वितरण किया गया। जन सभा को संबोधित करते हुए इंकलाबी मजदूर केंद्र के हरिद्वार प्रभारी पंकज कुमार ने कहा कि आज हम एक ऐसे समय में महान अक्टूबर क्रांति की वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं जबकि पिछले डेढ़ साल से भी अधिक समय से रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध रुकने का नाम नहीं ले रहा है और अब इजराइल व फिलिस्तीन के बीच जंग छिड़ चुकी है। रोज कितने ही निर्दोष नागरिक, महिलायें-बच्चे बमों, राकेटों और मिसाइल हमलों में मारे जा रहे हैं। इन युद्धों के लिये अमेरिका, रुस, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन जैसे खून के प्यासे साम्राज्यवादी खासकर अमेरिकी साम्राज्यवादी सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। हमें इन अन्यायपूर्ण युद्धों का डटकर मुकाबला करना होगा। शांति के लिए आवश्यक शर्त है कि हमें क्रांति को संगठित करना होगा। भेल मजदूर ट्रेड यूनियन के महामंत्री अवधेश कुमार ने कहा कि हर साल 7 नवंबर को पूरी दुनिया के क्रांतिकारी और वर्ग सचेत मजदूर इसकी वर्षगांठ मनाते हैं। इसे महान अक्टूबर क्रांति इसलिये कहा जाता है कि यह क्रांति मानव इतिहास की एक युगांतरकारी घटना थी क्योंकि इसने इतिहास में पहली बार किसी देश में बहुसंख्यक शोषित-उत्पीड़ित जनता का शासन कायम किया था और इस तरह एक नये युग की शुरुआत की थी।क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के संयोजक नासीर अहमद ने कहा कि समाजवादी सोवियत संघ की उपलब्धियां भी महान थी। इस क्रांति के बाद कायम हुई क्रांतिकारी सरकार ने तत्काल ही जमींदारों से जमीनें छीन कर मेहनतकश किसानों में बांट दी। साथ ही मजदूरों के नेतृत्व में मुनाफे के बजाय समाज की जरूरतों के मद्देनजर औद्योगिक विकास को रफ्तार दी। यह तथ्य इतिहास में दर्ज है कि 1929 की महामंदी के दौरान जब दुनिया के अग्रणी पूंजीवादी देशों- अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी सभी में त्राहि-त्राहि मची हुई थी; फैक्टरी कारखाने बंद हो रहे थे और बेरोजगारी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रही थी; उस समय समाजवादी सोवियत संघ में उद्योगों में दिन दूना-रात चौगुना उत्पादन हो रहा था और बेरोजगारी का नामो-निशां भी नहीं था। प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की हरिद्वार प्रभारी नीता ने कहा कि लोकतंत्र की ढींगे हांकने वाले अमेरिका, इंग्लैंड जैसे पूंजीवादी देशों तक में भी उस समय आधी आबादी महिलाओं को वोट देने का अधिकार हासिल नहीं था। लेकिन रूस में क्रांति के तुरंत बाद सभी पुरुषों के साथ सभी महिलाओं को भी वोट देने का अधिकार प्रदान कर दिया गया। इसके दबाव में बाद के वर्षों में इन पूंजीवादी मुल्कों को भी महिलाओं को वोट देने का अधिकार देना पड़ा।
इतना ही नहीं सोवियत समाजवाद ने पूरी महिला आबादी को उत्पादक श्रम से जोड़ा और उन्हें शिक्षित-प्रशिक्षित किया; उनके छोटे बच्चों के पालन-पोषण हेतु काम की जगहों पर ही क्रेच (बच्चों के पालना घर) एवं सार्वजानिक भोजनालयों व सार्वजानिक कपड़ा धोने के केंद्र स्थापित किए। कुछ ही सालों में रुस ने वैश्यावृत्ति एवं नशाखोरी जैसी सामाजिक बुराईयों का नामोनिशान मिटा दिया। लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था में चारों ओर अश्लील उपभोक्तावादी संस्कृति का बोलबाला है। महिलाओं को मात्र यौन वस्तु समझा जाता है। जन सभा में राजा बिस्किट मजदूर संगठन के प्रधान बृजेश कुमार, ब्रज मोहन, बच्चा प्रसाद, अनीता, सत्यम ऑटो के मजदूर नेता महिपाल सिंह,चंद्रेश कुमार, एवरेडी मजदूर यूनियन के महामंत्री अनिल कुमार, कोषाध्यक्ष संजीव कुमार, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की इकाई सचिव दीपा, इंकलाबी मजदूर केंद्र के जेपी ने सभा का संचालन किया।

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