हरिद्वार

क्या अभी हीला हवाली करेगा प्रशासन, क्या माफिया को मिलेगा मुँह तोड़ जवाब

हरिद्वार।
कनखल रामकृष्ण मिशन रोड़ स्थित मनीराम जोहड़ को खुर्द-बुर्द कर माफिया , नेता , संतों और तत्कालीन अधिकारियों की सांठ-गांठ से तालाब (जल मग्न भूमि ) भूमि पर बनाए गए पुरूषोत्तम बिहार के मामले में राज्य सूचना आयोग ने 27.03.2023 को अपीलार्थी के अनुरोध को स्वीकार करते हुए जिला अधिकारी हरिद्वार को हाई कोर्ट उत्तराखण्ड के 2018 के आदेशों का अनुपालन करने व जोहड़ संबंधी राजस्व रिकार्ड की जांच कराने के लिए निर्देशित किया हैं। आयोग में सुनवाई के दौरान अपीलार्थी ने मनीराम जोहड़ से संबंधित अभिलखों के साथ हाईकोर्ट के 1951 की स्थिति बहाल किए जाने संबंधी आदेशों को भी मुख्य सूचना आयुक्त के समक्ष रखा। आयोग में अपना पक्ष रखते हुए अपीलार्थी ने पीठ को यह भी बताया कि किस तरह राजस्व विभाग ने अपनी जवाबदेही से पल्ला झाड़ते हुए कनखल पुलिस को हाईकोर्ट के आदेशों का अनुपालन कराने के लिए कह दिया गया । तदोपरांत मामले को समझते हुए मुख्य सूचना आयुक्त अनिल चन्द्र पुनेठा ने मनीराम जोहड़ संबंधी मामले में अपीलार्थी अनिल बिष्ट का अनुरोध स्वीकार करते हुए जिला अधिकारी हरिद्वार को उच्च न्यायालय के आदेशानुसार न्यायोचित कार्रवाही अमल में लाए जाने के लिए निर्देशित किया हैं। इस खबर के बाद से एक ओर मनीराम जोहड़ पर बने मकान व अपार्टमैंट में रहने वालों लोगों में हड़कंप मचा हैं तो वहीं दूसरी ओर राज्य सूचना आयोग के निर्देशों के उपरांत लोगों ने बिष्ट की मुहिम का खुशी जताते हुए बधाई दी हैं साथ ही कई लोगों के जेहन में सवाल उठने लगा हैं कि क्या मनीराम जोहड़ बहाल हो पाऐगा ? उल्लेखनीय है कि ग्राम शेखुपुरा कनखल 1359 फसली वर्ष के अनुसार मनीराम तालाब में अखाड़ा सिंघाड़ा खेती भूमि 15(1) जलमग्न भूमि अभिलेखों में दर्शाता आया हैं। म्युनिसिपल एक्ट 1916 के तहत सार्वजनिक तालाब तत्कालीन नगर पालिका हरिद्वार में निहित था तथा उत्तर प्रदेश काश्तकर अधिनियम 1919 की धारा 30 के अंतर्गत वह भूमि जिस पर जल भरा हो और सिंघाड़ा खेती या अन्य उपज लगाने में प्रयोगार्थ किया जाता हो, पर आनुवांशिक अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। लेकिन तत्कालीन नगर पालिका चैयरमेन, पार्षदों , अधिकारियों , संतों व भूमाफियाओं ने सभी नियमों , कायदो व कानूनों को ताक पर रख कर जोहड़ भूमि पर को शहर भर का कूड़ा-करकट नगर पालिका के वाहनों के माध्यम से पटवा कंकरीट का जंगल उगवा दिया गया। इतना ही नहीं अखाड़ा संत नियम कायदों की धज्जियां उड़ाने में यही नहीं रूका। आखाड़ा सोसाएटी एक्ट में पंजीकृत होने के पश्चात भी नियमों को रौंदता हुआ आगे बढ़ता रहा। यहां भगवाधारी संतों ने 5 ए के तहत डीजे की अनुमति लिए बगैर ही करोड़ों की बेशकिमती जमीन की बिक्री मुख्तारनामा के मार्फत कांग्रेसी नेता की पत्नी को कर दी।
सूत्र बताते हैं कि तालाब भूमि की जमीन बिक्री की ऐवज में मिले करोड़ों की धनराशि का भी संतों ने कहीं कोई ब्यौरा संबंधित चिट्स फंड सोसायटी कार्यालय में या अखाड़ा में प्रस्तुत नहीं किया गया।
अब देखना होगा कि जो राजस्व विभाग व प्रशासन मामले में राज्य सूचना आयोग के आदेशों पूर्व की भांति हीला-हवाली करता या फिर प्राकृतिक धरोहर को बहाली के लिए धरातल पर ईमानदारी से कवायद करता हैं।

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