हरिद्वार।
दुनिया में सबसे प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार समिति के प्रमुख डा. असले टोजे पहली बार शुक्रवार देर सायं हरिद्वार स्थित देव संस्कृति विश्वविद्यालय पहुंचे। देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डा. चिन्मय पण्ड्या ने नोबेल पुरस्कार समिति के प्रमुख डा. टोजे का मंगल तिलक व गायत्री मंत्र चादर आेढ$ाकर आत्मीय स्वागत किया। डा. टोजे ने आम्र कुंजों से घिरे हुए देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में स्थापित एशिया के एकमात्र बाल्टिक सेंटर और शांति—सुलह के लिए दक्षिण एशियाई संस्थान सहित पेपर रीसाइक्लिंग सेंटर सहित स्वावलंबन केन्द्र का अध्ययन किया। स्वयंसेवी कार्यकर्ता के समर्पण भाव और पारिवारिक माहौल से वे काफी प्रसन्न हुए। प्रतिकुलपति डा. चिन्मय पण्ड्या से उन्होंने कहा कि यह मेरी पहली यात्रा है लेकिन भविष्य में भी मैं यहां आना पसंद करूंगा। देसंविवि के वातावरण में आध्यात्मिक शक्ति कण—कण में समायी है। इसे शांत मन से अनुभव किया जा सकता है।
अध्यात्म के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर नोबेल पुरस्कार के समकक्ष टेम्पल्टन पुरस्कार की चयन समिति के सदस्य प्रतिकुलपति डा. चिन्मय पण्ड्या से देवसंस्कृति विश्वविद्यालय एवं गायत्री परिवार द्वारा संचालित हो रहे। पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, नारी जागरण, युवा जागरण सहित अनेक जन सरोकारों से संबंधित विषयों पर विस्तृत चर्चा हुई। डा. टोजे ने कहा कि युवाओं को चाहिए कि वे मोबाइल का उपयोग भारतीय संस्कृति की विरासत को संजोये रखने के साथ वैदिक संस्कृति को पूरे विश्व में पहुंचाने के लिए करें। जिससे भारत की महान सांस्कृतिक विरासत से दुनिया परिचित हो सके। भारत के पास सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अमूल्य निधि है। संयुक्त राष्ट्र संगठन (यूएनओ) द्वारा विश्व शांति के लिए गठित अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक आध्यात्मिक मंच के निदेशक एवं देसंविवि के प्रतिकुलपति डा. चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि नोबेल पुरस्कार समिति के अध्यक्ष ने देवसंस्कृति विश्वविद्यालय द्वारा संचालित विभिन्न प्रकल्पों का अध्ययन किया और उन्होंने पुन: आने का वादा किया।
इस अवसर पर प्रतिकुलपति डा. चिन्मय पण्ड्या ने नोबेल पुरस्कार समिति के प्रमुख डा. टोजे को देसंंविवि के स्वावलंबन विभाग द्वारा निर्मित जूट बैग, समस्त विश्व को भारत के अजस्र अनुदान जैसे कई युग साहित्य आदि भेंटकर सम्मानित किया।