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रामकृष्ण मिशन बेल्लूर मठ के अध्यक्ष स्वामी स्मरणानंद महाराज को दी संतों ने श्रद्धांजलि

’स्वामी स्मरणानंद महाराज का जीवन ईश्वर केंद्रित था: स्वामी दयामूत्र्यानन्द’

हरिद्वार।
रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम कनखल के सचिव स्वामी दयामूत्र्यानन्द महाराज ने कहा कि स्वामी स्मरणानंद महाराज का जीवन का जीवन ईश्वर केंद्रित था उन्होंने निस्वार्थ भाव से समाज के लिए कार्य किया। उन्होंने कहा कि उन्हें रामकृष्ण संघ में जुड$ने के लिए भी स्वामी स्मरणानंद महाराज ने ही अनुमति दे दी थी। तब वह रामकृष्ण मिशन संघ के महामंत्री के पद पर थे। उनके संन्यास समारोह के दौरान स्वामी स्मरणानंद आचार्य थे। उनके विचार हर युग में प्रासंगिक रहेंगे और उनका जीवन प्रेरणादायी है। स्वामी दयामूत्र्यानन्द महाराज ने कहा कि आदि गुरु शंकराचार्य रचित एक श्लोक स्वामी स्मरणानंद महाराज को बहुत प्रिय था। महाराज श्री का कहना था कि अगर कोई राजा हो या साधु संतों का मुखिया हो यदि उसे आत्म साक्षात्कार नहीं हुआ तो राजा या मुखिया होने से कोई नहीं फर्क पड$ता है। कार्यक्रम का संचालन कर रहे स्वामी हरिहरानंद महाराज ने स्वामी स्मरणानंद महाराज के जीवन काल के कुछ मुख्य पहलू बताए। उन्होंने कहा कि स्वामी स्मरणानंद महाराज रामकृष्ण मिशन मुंबई आश्रम के स्वामी अपर्णानन्द के संपर्क में आए और 19६2 में वे रामकृष्ण मिशन में सम्मिलित हुए। वह चेन्नई केंद्र के सचिव भी रहे और 207 में रामकृष्ण मिशन संघ के उपाध्यक्ष चुने गए। 1 साल सेवा देने के बाद फिर वह अध्यक्ष चुने गए और 7 वर्ष तक अनासक्त भाव से संघ की सेवा करते हुए वे रामकृष्ण मिशन संघ के 16वे अध्यक्ष के रूप में पूरे देश में चल रहे सेवा प्रकल्पों की देखरेख करते रहे है। स्वामी सुविज्ञेयानन्द ने अपने संस्मरण में कहा की रायपुर आश्रम में 19८3 में जब उनकी मुलाकात स्वामी स्मरणानन्द से हुई तो उन्होंने सरस्वती मां के रूप का महत्व बताते हुए कहा कि उनके बाएं हाथ में पुस्तक और दाएं हाथ में जपमाला होती है जो यह इंगित करती है कि भौतिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान दोनों जीवन के महत्वपूर्ण अंग है। गुरुग्राम से आए स्वामी शांतात्मानंद महाराज  ने कहा कि सहज रूप में अनासक्त भाव से स्वामी स्मरणानंद महाराज कार्य करते थे। महंत गुरमीत ङ्क्षसह महाराज, निर्मल संतपुरा के अध्यक्ष संत जगजीत ङ्क्षसह महाराज, महंत रविदेव शा ी आदि ने स्वामी स्मरणानंद महाराज को भावभीनी श्रद्धांजलि अॢपत की। इस अवसर पर स्वामी जगदीश महाराज (स्वामी अनाद्यानन्द) ने सभी का आभार जताया।

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