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देश में व्याप्त अंधकार को दूर करने में पतंजलि का बड$ा योगदान :  स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज

35 वर्ष पूर्व छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा जो पुरुषार्थ किया गया,वैसा ही पुरुषार्थ 10 करोड$ सनातनधॢमयों को करना है: स्वामी रामदेव
महॢष दयानंद सरस्वती ने अंग्रेजी का एक भी अक्षर पढ$े बिना राष्ट्रीयता का उत्थान किया : स्वामी गोविन्द देव गिरि महाराज
एक क्षण के लिए भी अपने भीतर ग्लानि, निस्तेजता और विस्मृति को न आने दें : स्वामी रामदेव महाराज
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हरिद्वार।
स्वामी गोविन्ददेव गिरि महाराज के श्रीमुख से छत्रपति शिवाजी महाराज कथा’’ के दूसरे दिन का शुभारम्भ पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में हुआ। स्वामी रामदेव महाराज ने व्यासपीठ को प्रणाम करते हुए गोविन्ददेव गिरि महाराज से कथा प्रारंभ करने का अनुरोध किया। कथा में स्वामी गोविन्द देव गिरि महाराज ने कथा में बताया कि जो कार्य भगवान श्रीराम, भगवान श्री कृष्ण ने किया, यदि वैसा ही कार्य शिवाजी महाराज न करते तो न पतंजलि योगपीठ बनता और न हम योग का नाम ले सकते, कुछ और ही कर रहे होते। उन्होंने कहा कि मेरे अंदर सभी महापुरुषों को लेकर बड$ा आदर है लेकिन महॢष दयानंद सरस्वती के लिए विशेष आदर है क्योंकि उन्होंने अंग्रेजी का एक भी अक्षर पढ$े बिना राष्ट्रीयता का उत्थान किया। विशुद्ध वैदिक, विशुद्ध भारतीय प्रेरणा स्वामी दयानंद सरस्वती की ही देन है। देश बड$ा है, अंधकार घना है, अज्ञान पीढि$यों से जमा है, उनको दूर करने के लिए प्रयासों की भी आवश्यकता है। इन प्रयासों में पतंजलि योगपीठ का बहुत बड$ा योगदान है। देश जगना चाहिए, अभी पूरा जगा नहीं है। मानसिक गुलामी अभी भी है। अंग्रेेजी के कारण ही देश—विदेश में इस प्रकार के आख्यान (नैरेटिव) निर्माण करके इस गुलामी को पक्क ा करने का प्रयास आज भी हो रहा है। आज एक बौद्धिक संघर्ष की आवश्यकता है। इस अवसर पर स्वामी रामदेव महाराज ने कहा कि आज छत्रपति शिवाजी महाराज ने देश को मात्र राजनैतिक नेतृत्व ही नहीं दिया अपितु सामाजिक, आॢथक, धाॢमक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक व वैचारिक दृष्टि से यह राष्ट्र कैसे गौरवशाली बने, परम वैभवशाली बने और युग—युगान्तरों तक इसकी कीॢत रहे, इसके लिए बड$ा आन्दोलन खड$ा किया। 35 वर्ष पूर्व छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा जो पुरुषार्थ किया गया, वैसा ही पुरुषार्थ 10 करोड$ सनातन धॢमयों को करना है, उसके लिए स्वामी गोविन्द देव गिरि महाराज छत्रपति शिवाजी का चरित्र श्रवण करा रहे हैं। हम सबको प्रतिबद्ध होना है कि जब एक वीर बालक, ऋषियों का वंशधर अपने विकल्प रहित संकल्प, अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ और पराक्रम के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण के चरित्र को, उनके एक-एक सद्गुण को स्वामी महाराज अलग—अलग कथानकों, प्रसंगों, शा ीय संदर्भों के माध्यम से, एेतिहासिक संदर्भों के माध्यम से आपके समक्ष रख रहे हैं। माता जीजा बाई ने जो संस्कार, स्वाभिमान, शौर्य, वीरता, पराक्रम छत्रपति शिवाजी महाराज को दिए, जो संस्कार माता अंजनी ने हनुमान जी को दिए, जो संस्कार माता यशोदा ने बालकृष्ण भगवान में सम्प्रेषित किए, जो संस्कार माता कौशल्या ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को दिए और अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व आहुत करने का स्वाभिमान गुजरी माता ने गुरु गोविन्द ङ्क्षसह को दिया, जो संस्कार माता मदालसा ने दिए, उन सभी माताआें की भूमिका स्वामी गोविन्द देव गिरि महाराज निभा रहे हैं कि वह संस्कार हम सबमें सम्प्रेषित हों। देश की सब माताएँ इन माताआें से प्रेरित होकर उनका अनुसरण करें और हम सब एक क्षण के लिए भी अपने भीतर ग्लानि, निस्तेजता और विस्मृति को न आने दें। आज से 35 वर्ष पूर्व योग, आयुर्वेद व स्वदेशी की यह यात्रा शून्य से प्रारंभ हुई और आज इसने विराट् स्वरूप ले लिया। पूरे विश्व के ज्ञात इतिहास में जितने अल्प कालखण्ड में यह इतना विशाल सनातन धर्म की सेवा का अनुष्ठान महायज्ञ आगे बढ$ा है, वैसा कोई दूसरा उदाहरण देखने को नहीं मिलता। हमें यहाँ रूकना नहीं है, यात्रा अभी बहुत लम्बी है। हम तो चरैवेति—चरैवेति के उपासक हैं। पूज्य महाराज श्री हमें अपने स्व, अपनी निजता से जोड$कर, प्रतिपल प्रेरणा देकर अपने स्वधर्म व राष्ट्रधर्म के लिए हमें आंदोलित कर रहे हैं। हम अपने वेदधर्म, ऋषिधर्म, सनातनधर्म, राष्ट्रधर्म के साथ पूरी तरह एकात्म होकर, शाश्वत मूल्यों को अपने जीवन में जीते हुए सेवा कार्य कर रहे हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज इस बात के प्रतीक हैं कि जो शत्रु पक्ष है, उसका बाध्ेा भी हो। यह शत्रु किसी एक पक्ष में नहीं होते अपितु विधायिका में, कार्यपालिका में, न्यायपालिका में, मीडिया में, शिक्षा में, चिकित्सा में पग—पग पर आपको शत्रुआें का समाना करना पड$ेगा। और उन शत्रुआें के साथ संघर्ष करते हुए एक यौद्धा के रूप में विजयी होकर हम निकलें यह पूज्य महाराजश्री ने हमको प्रेरणा दी। कथा में उनके श्रीमुख के निकले एक-एक तत्व को हमें आत्मसात करना है। इस अवसर पर पतंजलि योगपीठ से सम्बद्ध समस्त इकाइयों के इकाई प्रमुख, अधिकारीगण, विभागाध्यक्ष, पतंजलि विश्वविद्यालय, आचार्यकुलम्, पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय, पतंजलि गुरुकुलम्, पतंजलि रिसर्च फाउण्डेशन, पतंजलि कन्या गुरुकुलम्, वैदिक गुरुकुलम् इत्यादि सभी शिक्षण संस्थान के शिक्षकगण, विद्यार्थीगण, पतंजलि संन्यासाश्रम के समस्त संन्यासी भाई व साध्वी बहनें, पतंजलि योगपीठ फेस—1 व फेस—2 के थैरेपिस्ट, चिकित्सक सभी कर्मयोगी भाई-बहन आदि उपस्थित रहे।

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