उत्तराखंड हरिद्वार

कोटावाली की तेज धारा में फसी 50 यात्रियों की जान, देखे कैसे बची

हरिद्वार।
ड्राइवर की लापरवाही से यात्रियों की जान आफत में आ गई। रूपेडिया डिपो बस कोटावाली नदी की बीच धारा में फंस गई जिसके बाद यात्रियों में चीख पुकार मच गई। शनिवार सुबह पहाडो में तेज बारिश के बाद कोटावाली नदी उफान पर आ गई। लेकिन हाइवे पर यातायात बराबर चल रहा था। शनिवार सुबह लगभग 10 बजे रूपेडिया डिपो के चालक ने बिना सोचे समझे यात्रियों से खचाखच भरी रोडवेज बस को कोटावाली नदी में उतार दिया। लेकिन पानी की तेज धारा को देख चालक नियंत्रण खो बैठा और बस नीचे की ओर जाने लगी। बस में यात्रियों ने चीख पुकार मचानी शुरू कर दी। गनीमत रही कि नेशलन हाईवे की इस वैकल्पिक व्यवस्था की खामी के चलते बस एक पत्थर से अड गई। लेकिन पानी का बहाव इतना तेज था और अधिक था कि बस में फंसे यात्री बस से उतरने का जोखिम नही ले सकते थे। वहीं मौके पर मौजूद राहगीर व पुलिस कर्मी भी मूकदर्शक बनने के अलावा कोई मदद नही कर सकते थे। गनीमत रही की मौके पर मौजूद हाइवे निर्माण कम्पनी के कर्मचारियो द्वारा तत्काल हाइड्रा मशीन की सहायता से बस को रस्से से बांधकर रोका गया। दूसरी ओर खडी पॉकलैण्ड और जेसीबी की मदद से यात्रियों को रेस्क्यू कर बाहर निकाला गया। पुलिस के अनुसार बस रूपेडिया डिपो की थी जिसमें नेपाल मूल के करीब 50 यात्री सवार थे। बताया कि मौके पर यूपी ओर उत्तराखण्ड की पुलिस ने रेस्क्यू कर सभी यात्रियों को सुरक्षित निकाला।

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वैकल्पिक व्यवस्था को हुए पांच वर्ष, नेशनल हाईवे भूला पुल बनाना
नेशनल हाईवे 74 पर बीते कई वर्षो से निर्माण जारी है। कई स्थानों पर रोड संकरे है जिसके चलते दुर्घटना हो ने की आशंका बनी रहती है। कोटावाली का पुल वर्ष 2018 से छतिग्रस्त होने के कारण भारी वाहनो के लिए बंद किया गया है। एनएच द्वारा वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में पुल के नीचे नदी के बीच से रास्ता बनाया था। जिसके बाद जिला प्रशासन और नेशनल हाईवे एथोरटी पुल को दुरूस्त करना अथवा समानांतर नया पुल बनाना भूल गई। पांच वर्ष बीत चुके है। एनएच— 74 का दो प्रदेशो को जोडने वाला पुल आज तक भी नही बन पाया। जिसके चलते बरसात के मौसम में बडे वाहनो को कोटावाली के तेज बहाव में जान हथेली पर लेकर क्रास कराया जाता है। इसका ताजा उदाहरण शनिवार को देखने को मिला। इस संबंध में जब एनएच 74 के प्रोजेक्ट डायरेक्ट राकेश कुमार से संपर्क साधने का प्रयास किया तो उनका फोन बंद मिला। जिससे साफ  पता चलता है कि बडे अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रहे है।

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