उत्तराखंड हरिद्वार

अस्पताल में डिस्चार्ज पेपर्स के साथ मिलेगा गौरैया का घोंसला

 

 

हरिद्वार।
अस्पताल में मरीज के ठीक होने के उपरांत उसे डिस्चार्ज पेपर के साथ अस्पताल प्रबंधन अपनी ओर से गौरैया संरक्षण का घोंसला उपहार स्वरूप देगा। केयर कालेज आफ नर्सिंग के प्रांगण में आयोजित गौरैया संरक्षण कार्यशाला के दौरान की गई इस मार्मिक एवं भावपूर्ण घोषणा को जीवंत करते हुए शिवालिक नगर स्थित लीलावती हास्पिटल की अध्यक्षा डाक्टर ममता त्यागी ने इस कार्य की शुरुआत बुधवार को डिस्चार्ज होने वाले सभी मरीजों को गौरैया आश्रय रूपी घोंसला भेंट करके की।   डाक्टर ममता त्यागी ने कहा कि इस प्रयास का उद्देश्य यह है कि मरीजों, उनके परिवारजनो एवं क्षेत्र के प्रत्येक नागरिक को गौरैया संरक्षण एवं संवर्धन के प्रति जागरूक किया जा सके।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता एवं उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के पक्षीविद् डाक्टर विनय सेठी ने गौरैया संरक्षण से जुड$े विभिन्न मुद्दों पर प्रकाश डाला। डाक्टर सेठी ने गौरैया के संकटग्रस्त अस्तित्व पर चर्चा करते हुए कहा की गौरैया हमारे पर्यावरण, साहित्य, समाज एवं संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है, परंतु हमारी संवेदनहीनता के चलते यह हमारे आंगन से चुपचाप विदा हो रही है। डाक्टर सेठी ने कहा कि अभी भी समय है यदि हम आगे बढ$ कर अपने घर-आंगन में लकडी के घोंसले लगाते हैं तो गौरैया उनमें घोंसला बनाकर अपनी संख्या में इजाफा कर सकती है।
इस मौके पर उपस्थित केयर कालेज आफ नर्सिंग के प्रबंध निदेशक राजकुमार शर्मा ने गौरैया की घटती संख्या पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि पक्के होते घरों और डब्बा बंद खाद्य सामग्री के जमाने ने गौरैया का आशियाना के साथ ही दाना—पानी भी छीन लिया है। उन्होंने सभी अस्पताल के समस्त कर्मचारियों, मरीजो एवम् उपस्थित सभी व्यक्तियों से आवाहन किया कि घर-घर फुदकने वाली गौरैया को बचाने के लिए सभी को आगे आना होगा। केयर कालेज की डायरेक्टर श्रीमती प्रीत शिखा शर्मा ने उपस्थित सभी व्यक्तियों से अपील की कि वे गौरैया संरक्षण के पुण्य कार्य में पूरे उत्साह के साथ आगे आएं और इस पक्षी की सुखद वापसी संभव बनाएं।
कार्यक्रम में उपस्थित समाजसेवी विनीश पंवार ने कहा कि गौरैया के पर्यावरणीय, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को दृष्टिगत रखते हुए हमें गौरैया संरक्षण में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। प्रसिद्ध समाजसेवी संजीव चौहान ने बताया कि जब किसी उद्देश्य की पूर्ति में जनसमूह अपना योगदान देना प्रारंभ कर देता है तो वह कार्य क्रांति में परिवर्तित हो जाता है। उपस्थित सभी प्रतिभागियों ने आशा व्यक्त की कि शीघ्र ही गौरैया वापसी का यह कार्यक्रम एक क्रांति के रूप में उत्तराखंड की वादियों से बाहर निकलकर पूरे भारतवर्ष में फैलेगा।

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