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आयुर्वेद में पिष्टी व भस्म का अत्यधिक चिकित्सीय महत्व  बालकृष्ण

पतंजलि ने किया मुक्ता पिट्टी की प्रभावशीलता का अध्ययन
हरिद्वार।
पतंजलि के वैज्ञानिकों ने प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के आधार पर पेट के अल्सर के उपचार के लिए मुक्ता पिष्टी की प्रभावशीलता का अध्ययन किया है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्राकृतिक खनिजों का पिष्टी और भस्म के रूप में अत्यधिक चिकित्सीय महत्व है। प्राचीन ग्रंथ रसतरंगिणी में कैल्शियम युक्त औषधि मुक्ता पिष्टी का उल्लेख मिलता है, जो पेट, आंखों और हड्डियों से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में प्रभावी मानी गई है। मुक्ता पिष्टी उच्च गुणवत्ता वाले समुद्री मूल के मोतियों से निर्मित की जाती है और इसकी क्षारीय प्रकृति इसे पेट की एसिडिटी से संबंधित बीमारियों के उपचार में सहायक बनाती है। इस शोध से यह प्रमाणित हुआ है कि मुक्ता पिष्टी पेट के अल्सर के उपचार में अत्यंत प्रभावी और सुरक्षित उपाय है। यह दवाइयों के लम्बे समय तक सेवन से उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभावों से मुक्त है और रोगी को एक स्थायी विकल्प प्रदान करती है। यह शोध न केवल आयुर्वेद की प्राचीन परंपरा की वैज्ञानिकता को प्रमाणित करता है, बल्कि पेट की गंभीर समस्याओं के लिए सुरक्षित और प्रभावी उपचार भी प्रस्तुत करता है। इस उपलब्धि पर आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि भारतीय सनातन ग्रंथों में वर्णित ज्ञान में समग्र विश्व के कल्याण की अद्वितीय शक्ति है। पतंजलि इसी ज्ञान से प्रेरित होकर जन कल्याण की दिशा में निरंतर अग्रसर है। उन्होंने इस शोध को आयुर्वेदिक चिकित्सा में एक नई दिशा का परिचायक बताया। पतंजलि अनुसन्धान संस्थान के उपाध्यक्ष और प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अनुराग वार्ष्णेय ने कहा कि सनातन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के इस अद्भुत संगम में पूरे विश्व को निरोगी बनाने की अपार क्षमता है। हमारा प्रयास है कि आयुर्वेद के इस प्राचीन ज्ञान को वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ प्रस्तुत किया जाए।

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