हरिद्वार।
वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अरविंद कुमार श्रीवास्तव सदस्य टीएसी संचार मंत्रालय भारत सरकार ने महामहिम राष्ट्रपति सहित 6 को पत्र लिखकर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सेंसर बोर्ड ऑफ इंडिया) को समाप्त करने की मांग की है ।
बताया कि सेंसर बोर्ड ऑफ इंडिया की स्थापना 15 जनवरी 1951 में की गई थी। इसका मुख्य कार्य फिल्मों को परीक्षित कर यदि उनमें कोई आपत्तिजनक कंटेंट नहीं है तो उन्हें सर्टिफिकेट जारी कर रिलीज करने की अनुमति दे देना, तथा यह भी देखना कि भारत में निवास करने वाले किसी वर्ग की धार्मिक भावनाएं तो आहत नहीं हो रही हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से फिल्म निर्माताओं द्वारा ऐसे कंटेंट बनाकर उन पर फिल्में रिलीज की जा रही हैं जिससे कि भारत में निवास करने वाले सनातनीयौन की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही है, हाल ही में मुख्यता पीके, केदारनाथ और वर्तमान में *आदिपुरुष* जो महान ग्रंथ रामायण पर आधारित है, सोशल मीडिया के माध्यम से कुछ चलचित्र भाग देखने को मिले हैं, जिनमें सड़क छाप भाषा का प्रयोग किया गया है, जिससे सनातन धर्म के मानने वालों के आराध्य श्री राम, श्री लक्ष्मण, माता सीता, का अपमान किया गया है, यही नहीं चलचित्र में दिखाए गए वस्त्र वेशभूषा भी आपत्तिजनक है जिससे सनातन धर्म के मानने वालों की आस्था आहत हो रही है, इसके अलावा ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज होने वाले कंटेंट आपत्तिजनक है, बावजूद इसके रिलीज हो रही हैं जो कि साफ साफ यह प्रदर्शित करता है कि सेंसर बोर्ड ऑफ इंडिया बिना किसी निरीक्षण के निर्देशकों से पैसे लेकर सर्टिफिकेट प्रदान कर रिलीज करने की अनुमति प्रदान कर रहा है, वह दिन दूर नहीं जब कोई सरफिरा व्यक्ति ऐसे निर्देशकों व उनकी पूरी टीम पर जानलेवा हमला कर देगा जिससे समाज में वैमनस्यता फैलने की संभावना प्रबल होगी, ऐसे में उचित यह होगा कि बोर्ड को भंग करके सर्टिफिकेट की कमान माननीय सर्वोच्च न्यायालय को सौंप दी जाए ताकि समाज में चलचित्र के माध्यम से ऐसी सामग्री ना परोसी जा सके जिससे किसी वर्ग की भावनाएं आहत हो, फिल्मों का मुख्य कार्य मनोरंजन का है वही बना रहे, हरिद्वार के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अरविंद कुमार श्रीवास्तव ने बताया ये पत्र महामहिम राष्ट्रपति, भारत के प्रधान न्यायाधीश, प्रधानमंत्री, केंद्रीय प्रसारण मंत्री, राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा, और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को प्रेषित किया गया है ।