लद्दाख एंड जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र की गढ़वाल विश्वविद्यालय अंतर्गत हरिद्वार शाखा द्वारा किया गया विचार गोष्ठी का आयोजन बता दें कि 22 फरवरी 1994 के दिन भारत की संसद ने संकल्प लिया था कि वह विदेशी आधिपत्य में अपने सभी क्षेत्रों को पुनः प्राप्त कर लेगी । यह भी संकल्प लिया गया था कि पाकिस्तान और चीन के आधिपत्य वाले क्षेत्र भारत के अभिन्न अंग हैं।
गोष्ठि को संबोथित करते हुए डॉ अरविंद श्रीवास्तव एडवोकेट ने बताया कि पीओजेके (पाकिस्तान के कब्जे वाला जम्मू कश्मीर) कहा जाता है, वर्तमान में जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश का एक जिला (14000 वर्ग किमी लगभग आज भी विदेशी अधिपत्य में है जिसे मुक्त करवाने का संकल्प तत्कालीन कांगेस शाषित भारत के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के नेतृत्व में समस्त संसद द्वारा एक स्वर में लिया गया था । जबकि वर्तमान कांग्रेस उसी विरोध में और अक्षुण्ण भारत के संकल्प के विरोध करती नजर आती है ।
अधिवक्ता कृष्ण कुमार सैनी ने बताया कि POTL (पाकिस्तान अधिकृत लद्दाख क्षेत्र) कहा जाता है, वर्तमान में केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लेह जिले का हिस्सा है (75000 वर्ग किमी), शक्सगाम घाटी- पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित बाल्टिस्तान का हिस्सा, 2 मार्च 1963 को पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से चीन को उपहार में दिया गया था । आज जरूरत पूरी दृढ़ता से उस संकल्प को पुनर्जीवित करने की है, आज भारत की वर्तमान सरकार ने जैसे दृढ़ संकल्प के साथ धारा 370 को समाप्त किया उसी तरह आज जरूरत अपनी खोई जमीन को वापस लेने की है ।
विकास तिवारी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि 1962 के युद्ध के उपरांत से से ही भारत का एक बहुत बड़ा अक्साई चिन-लद्दाख का हिस्सा चीन के कब्जे में है जबकी दक्षिण पश्चिम तिब्बत में मिन्सर जोकि एक भारतीय एन्क्लेव को 1954 की ‘पंचशील’ वार्ता के दौरान नेहरू सरकार द्वारा जमीन को बंजर बता कर चीन को एकतरफा उपहार में दे दिया गया था।
संकल्प की पृष्ठभूमि
1993 में, ‘पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर’ (पीओजेके) की पाकिस्तानी अदालत ने फैसला सुनाया था कि गिलगित बाल्टिस्तान जम्मू और कश्मीर का हिस्सा था। 9 फरवरी 1990 को, पाकिस्तानी संसद ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को खारिज करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था। 1993 में, अमेरिकी विदेश विभाग के रॉबिन राफेल ने भारत का दौरा किया और कश्मीर पर पाकिस्तान की भाषा बोली। सितम्बर 1993 में, अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कश्मीर का उल्लेख किया। भारत को कश्मीर से बेदखल करने के लिए अमेरिका और आईओसी एक अंतरराष्ट्रीय तख्तापलट की सोच का हिस्सा थे, जिस से कश्मीर से भारत को हटाया जाए।
इन दबावों का मुकाबला करने के लिए, सभी राजनैतिक दल एक रूप में खड़े हुए, और प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव के मार्गदर्शन में, 22 फरवरी 1994 को संसदीय प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया कि जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के सभी कब्जे वाले क्षेत्र भारत का अभिन्न अंग थे।
यह प्रस्ताव इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने 27 फरवरी 1994 को कश्मीर में भारतr द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन पर जिनेवा में एक प्रस्ताव पेश करने की पाकिस्तान की योजना का मुकाबला करने में मदद की। तत्कालीन विपक्ष के नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल जिनेवा गया और प्रस्ताव को पेश होने से रोक दिया।
11 मार्च 2020 को संसदीय प्रस्ताव पर संसदीय प्रश्न संख्या 2977 के जवाब में, विदेश मंत्री ने कहा कि सरकार संकल्प के लिए प्रतिबद्ध है और लगातार मांग करती है कि पाकिस्तान उसके द्वारा अवैध रूप से कब्जा किए गए क्षेत्रों को खाली कर दे।