हरिद्वार।
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के ऋषिकुल परिसर में औषधीय वृक्षों का बेधड़क कटान और पातन हो गया। बताया जा रहा है कि कटान के लिए न तो विश्वविद्यालय प्रशासन और वन अथवा उद्यान विभाग से विधिवत अनुमति भी नहीं ली गई। यही नहीं वृक्षों की नीलामी के लिए अधिप्राप्ति नियमावली के तहत टैंडर प्रक्रिया भी नहीं अपनाई गई है। उल्लेखनीय है कि औषधीय पादपों की यह वाटिका आयुर्वेद के विद्यार्थियों के लिए एक प्रयोगशाला भी है, जहां वे औषधीय पादपों की भौतिक पहचान के अलावा उनके गुण, द्रव्य, धर्म और उनकी औषधीय उपयोगिता की व्यवहारिक जानकारी प्राप्त करते हैं। दूसरी ओर परिसर के आवासीय और अनावासीय भवनों के साथ जानमाल के लिए खतरनाक बने गिरांसू वृक्षों के पातन के प्रति विश्वविद्यालय परिसर प्रशासन ने आंखें मूंद रखी हैं।मानसून सीजन में भी ऐसे गिरांसू पेड़ों का पातन नहीं किया गया तो यह किसी अनहोनी को आमंत्रण दे सकता है।
उल्लेखनीय है कि विगत दिनों हरिद्वार रोशनाबाद मार्ग के दोनों ओर गिरांसू पेड़ों को जानमाल की सुरक्षा के दृष्टिगत कटवा दिया गया था। वह भी तब ,जबकि एक स्कूटी सवार युवती की पेड़ गिरने से मौत हो गई थी। ऐसे में बेपरवाह विश्वविद्यालय प्रशासन से जानमाल और अन्य उपयोगी वृक्षों की सुरक्षा के लिए जिला प्रशासन और संबंधित विभागों को हस्तक्षेप करना चाहिए और बिना अनुमति पेड़ों के कटान, पातन और बिना टैंडर प्रक्रिया अपनाए प्रकाष्ठ को मनमाने ढंग से बेच डालने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही होनी चाहिए। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विगत वर्षों में परिसर से कीमती चंदन के पेड़ों की भी चोरी हुई थी। जिसमे बिना आंतरिक मिलीभगत के चोरी होना संभव नही था।















































