हरिद्वार।
लखनऊ कोर्ट परिसर में पश्चिमी उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में आतंक का पर्याय रहे जीवा की हत्या का समाचार मिलते ही हरिद्वार में भी कईयों ने जहां राहत की सांस ली तो जीबा के कई गुर्गे इस खबर को सुनते ही भूमिगत हो गए हैं। तीर्थनगरी में जीवा के लिए पर्र्दे के पीछे काम करने वाले सफेदपोशों को मौत की खबर कष्टकारी हुई। विवादित भूमि व ट्रेवल्स व्यवासाय में मोटी रकम का एक हिस्सा गुर्गाे के माध्यम से जीवा के पास जाता था।
संजीव माहेश्वरी ऊर्फ जीवा के नाम का हरिद्वार समेत उत्तराखंड के कई जनपदों में भी खासा आतंक रहा है। कई मामलों में जहां जीवा का नाम सीधे तौर पर पुलिस डायरी में दर्ज हुआ तो कितने ही मामलों में उसके नाम का इस्तेमाल कर नवोदित बदमाशों ने भी अपना खौफ जीवा के नाम पर कायम करने का प्रयास किया। कई कथित भूमाफियाओं ने जीवा के नाम पर अपना कारोबार अर्श से फर्श तक पहुंचाया तो कईयों को अपना सब कुछ न्यौछावर भी जीवा के नाम पर करना पड़ा। लेकिन बुधवार को जैसे ही जीवा की लखनऊ में हत्या कर दिए जाने का समाचार सोशल मीडिया व चैनलों पर प्रसारित किया कि जीवा के नाम से आतंकित कईयों ने राहत की सांस ली। वहीं जीवा के नाम पर अपना नाम गुनाह की दुनियां में स्थापित करने व बेनाम रहकर जीवा के नाम पर आतंक फैलाने वाले भूमिगत हो गए। बताते चलें कि संजीव माहेश्वरी ऊर्फ जीवा की बुधवार को लखनऊ की एक अदालत के परिसर में गोली मारकर हत्या कर दी गई। एेसे में कई लोगों को तो एक दूसरे से बातचीत कर जीवा की हत्या की पुष्टी करते भी सुना व देखा गया। प्रत्यक्ष रूप में किसी ने भी जीवा की हत्या की जानकारी मिलने पर कोई तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं की। बताते चलें कि हरिद्वार के केबल व्यवसाय व सम्पत्ति क्रय विक्रय के कारोबार में गाहे बगाहे जीवा का नाम आता रहा है। खासतौर पर कई विवादित सम्पत्तियों को खाली कराने, बेचने में जीवा के नाम का कुछ भूमाफियाओं ने जमकर इस्तेमाल किया। कनखल के एक प्रापर्टी डीलर, कांग्रेसी नेता भारतेन्दु हांडा. हरिद्वार के एक कम्बल व्यापारी, श्रवणनाथ नगर के ट्रेवल्स व्यवसायी हरजीत सिंह सहित कई चर्चित हत्याआें तथा ट्रैवल व्यवसायी कृष्ण मुरारी पर जानलेवा हमला सहित कई मामलों में जीवा का नाम सीधे तौर पर लिया गया। वहीं चंद साल पहले ही सब्जी मंडी स्थित एक धर्मशाला में भी जीवा के नाम का इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा दर्जनों ऐसे मामले हरिद्वार में ही हैं जिनमें जीवा के गुर्गों ने जमकर धन कमाया व अपना खौफ भी कायम किया। खास बात यह कि कुछ राजनेता भी भले ही छुपकर लेकिन जीवा के नाम का फायदा उठाते रहे। वहीं कुछ नेताआें का नाम तो खुले तौर पर जीवा के खास होने के रूप में लिया जाता रहा। जाहिर है कि जीवा की हत्या के बाद पुलिस डायरी के पन्ने खुलने के डर से जीवा के नाम का इस्तेमाल करने वाले व उसके गुर्गे भूमिगत हो गए हैं। जबकि उसके नाम से आंतकितों ने राहत की सांस ली है।