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कालेज की नई मुहीम अतिथि को बुक्के की जगह देगे गौरय्या का घोसला

हरिद्वार।
एसएमजेएन कालेज के पर्यावरण प्रकोष्ठ के अन्तर्गत कालेज में गौरय्या संरक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। कालेज के एक छात्र अक्षय त्रिवेदी द्वारा बनाए गये गौरय्या के घोसले कालेज में आने वाले अतिथियो को देकर गौरय्या संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाता है। कालेज के प्राचार्य सुनील बत्रा ने बताया कि कालेज में पर्यावरण प्रकोष्ठ द्वारा गौरय्या संरक्षण को बढावा दिया जा रहा है। कालेज के ही एक छात्र अक्षय त्रिवेदी द्वारा गौरय्या के घोसले बनाये जा रहे है। बताया कि इस अभियान को कालेज प्रबंधन और प्रशासन द्वारा सहयोग दिया जा रहा है। कालेज का जो भी कार्यक्रम आयोजित होगे उसमें आने वाले मुख्य अतिथियो, विशिष्ठ अतिथियो व सम्मान्नीय अतिथियो को फ ूलो के बुक्को के स्थान पर गौरय्या संरक्षण के लिए के घोसले कालेज द्वारा भेट किये जाएगे। अभी तक जो घोसले भेट किये है उनमें से 9 प्रतिशत घोसलो में गौरया ने अपना आशियाना बनाया है। बताया कि पर्यावरण से संबंधित इस अभियान से कालेज के अन्य छात्र- छात्राआें को भी जोडा जा रहा है। अभी पर्यावरण प्रकोष्ठ से 2१ छात्र- छात्राए जुडे है। जो गौरय्या संरक्षण कार्यक्रम में सम्मिलित है। बताया कि छात्र अक्षय त्रिवेदी को घोसला बनाने का कार्य आता है और उसको कालेज की और से घोसले बनाने के लिए हर संभव सहायता की जा रही है। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जा रहा है कि उसकी पढाई पर उसकी इस एक्टिविटी का दबाव न बने। वहीं कालेज के प्रोफ ेसर व पर्यावरण प्रकोष्ठ के कोडिनेटर डा. विजय शर्मा ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए गौरय्या का घोसला बनाकर बांटे जा रहे है। बताया कि आधुनिक भवनो में ऐसे कोई स्थान नही होते जहां गौरय्या अपने घोसले बना सके इसलिए गौरया हमारे घर आंगन से दूर हो रही है। इसके संरक्षण के लिए घोसले बनाए जा रहे है। यह पर्यावरण संरक्षण का अहम पहलु है। जब हम घोसले लगाएगे और उन्हें थोडा खाना उपलब्ध कराएगे तो हम गौरय्या को संरक्षण प्रदान कर सकते है। बताया कि कालेज के छात्र अक्षय त्रिवेदी को गौरय्या संरक्षण पर ही कार्य करना था जिसे कालेज प्रबंधन व प्रशासन द्वारा पूरा सहयोग दिया जा रहा है। वही यह घोसले बनाता है घोसला बनाने में उसकी जो लागत आती है वह कालेज के पर्यावरण प्रकोष्ठ द्वारा वहन की जाती है। वह खाली समय में यह कार्य करता है। अभी तक 30 से अधिक घोसले बनाकर भेट किये जा चुके है। एक साल तक चलने वाली इस मुहीम से उम्मीद की जा रही है कि अधिक से अधिक लोगो को पर्यावरण और गौरय्या संरक्षण के प्रति जागरूक किया जा सके।

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