एलोपैथी भी भ्रामक विज्ञापनों से भरी पड़ी है
देश में एलोपैथिक डॉक्टर के सबसे बड़े नेटवर्क इंडियन मेडिकल एसोसिएशन आईएमए ने पतंजलि पर एलोपैथी के बारे में अपमानजनक बयान देने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। जिसमें मांग की गई है कि बाबा अपनी कंपनी पतंजलि के ब्रांड का भ्रामक विज्ञापन कर रहे हैं। जिसे रोकना आवश्यक है। आई एम ए कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान आधुनिक चिकित्सा और टीको के बारे में बाबा रामदेव के विवादासपद बयानों की ओर भी कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया था। कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए कार्रवाई को आगे बढ़ाया है।
यदि देखा जाए तो कोविड-19 के दौरान जब हजारों लोग इस महामारी से परेशान थे उसे समय यह इन एलोपैथी डॉक्टर के लिए छप्पर फाड़कर लॉटरी लगने जैसा साबित भी हुआ है। छोटे-छोटे नर्सिंग होम चलने वाले एलोपैथिक डॉक्टर आज कई नर्सिंग होम( हॉस्पिटल) के स्वामी बन चुके हैं। जो भी व्यक्ति कोरोना से पीड़ित होकर एक बार नर्सिंग होम में भर्ती हुआ फिर चाहे कोरोना पीड़ित बचा हो या ना बचा हो डॉक्टर की फीस और दवाइयां के बिल का मीटर लगातार हाई स्पीड से चला रहा। जिसके चलते उन डॉक्टरों पर लक्ष्मी माता की इतनी कृपा बरसी के आज एक अस्पताल की जगह 2-2, 3-3 अस्पताल के वह मालिक बन चुके हैं। इनके नर्सिंग होम के बाहर अपने मेडिकल स्टोर भी होते हैं, जिनमें दवाइयां उन एमआरपी रेट पर बेची जाती है जो बाजार में उन स्टोर्स के मुकाबले काफी कम रेट में होते हैं। यदि किसी मरीज के परिजन यह दवाइयां डॉक्टर के निजी मेडिकल स्टोर के अलावा कहीं और से खरीद भी लाते हैं तो उन दवाइयां को रिजेक्ट कर दिया जाता है। अपने ही मेडिकल स्टोर से दवाई खरीदने का दबाव बनाया जाता है उन्हें डराया भी जाता है। बड़ी बात तो यह है की बाबा रामदेव द्वारा भारतीय प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद जो की एलोपैथी के बढ़ते वर्चस्व के चलते डायलिसिस पर आ चुकी थी को एक क्रांति के रूप में नया जीवन दान मिलने से एलोपैथी और फार्मा कंपनियों का इंद्रासन खतरे में आ चुका है, जिसके चलते वह बाबा के प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति के इस अभियान को कहीं ना कहीं रोकने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। जबकि पूरी दुनिया जानती है की आयुर्वेद मानव शरीर की संरचना, प्रकृति और गुण दोष पर आधारित है। जबकि एलोपैथी के बारे में भी संपूर्ण संसार जानता है की एलोपैथी की दवाइयां साइड इफेक्ट भी देती है। तो सवाल वही है
फिर बाबा की ही आलोचना क्यों..