उत्तराखंड हरिद्वार

भ्रामक प्रचार इतना मानो मोहनजोदडो की खुदाई का कोई अंश निकल आया हो…

रेलवे ट्रैक नही डैम तक भारी सामग्री ले जाने का जरिया थी छोटी लाइन
हरिद्वार।
इन दोनों भीमगोडा बैराज से गंगा बंदी कर दी गई है जिसके तहत हरकी पेडी  तक केवल श्रद्धालुओ  के लिए 200 क्यूसेक के गंगाजल का प्रवाह किया जा रहा है। वहीं डाम कोठी से आगे गंग नहर को पूरी तरह वाॢषक संरक्षण के लिए सुखा दिया गया है। एेसे में कुछ पत्रकारों द्वारा एक भ्रामक समाचार प्रसारित किया जा रहा है। जिसमें बताया जा रहा है कि गंगा के सूखने पर हरकी पैड$ी के सामने रेलवे की छोटी लाइन निकली है। इस विषय को इतना बढ़ा  चढाकर दिखाया और बताया जा रहा है। कि मानो कुछ अजूबा या मोहनजोदडो  की खुदाई का कोई अंश निकल आया हो, जबकि हकीकत इससे बहुत दूर है। 1850  के आसपास गंग नहर के निर्माण के दौरान इस ट्रैक पर चलने वाली हाथ गाडी का इस्तेमाल निर्माण सामग्री ढोने के लिए किया जाता था। भीमगौडा बैराज से डाम कोठी तक डैम और तटबंध बनाए जाने का काम पूरा होने के बाद अंग्रेज अफसर निरीक्षण करने के लिए इन पटरियों पर हाथ गाडियों का इस्तेमाल करते थे। जिस समय की यह रेल लाइन दिखाई दे रही है उसके विषय में अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है कि भीमगोडा बैराज वीआईपी घाट के पास स्थित बैराज व डाम कोठी बैराज की दोनों के गेट खोलने और बंद करने के इस्तेमाल में लाई जाने वाली टा्रली के लिए किया जाता था। उस समय तीनों डाम पर लकड$ी के स्लिपर के गेट हुआ करते थे। वहीं डैम के गेट मरम्मत के लिए उपयोग में आने वाले उपकरण आदि को आसानी से इधर से उधर ले जाना काफी मुश्किल भरा था। इसी ट्रैक के माध्यम से डाम कोठी से लेकर भीमगोडा बैराज तक ङ्क्षसचाई विभाग की ट्राली संबंधित उपकरणों के अलावा खराब हो चुके स्लिपर को बदलने के लिए लाने ले जाने के उपयोग में लाई जाती थी। इसीलिए इस ट्रैक का निर्माण उस समय मैनपावर द्वारा काम करने के लिए किया गया था। 80 के दशक तक गंगा पार रोडी बेलवाला क्षेत्र की तरफ केवल और केवल कुंभ मेला का मैदान हुआ करता था। इसके अलावा यहां पर कोई मार्ग भी नहीं था। अलबत्ता बाद में 1986 के कुंभ के आसपास यहां से एक सडक निकाल दी गई। जिसके लिए पुरानी चैनल के पास स्लिपर का एक पुल बनाया गया था। बहरहाल इन दिनों में यह भ्रामक प्रचार किया जा रहा है की यहां पर रेलवे ट्रैक जिसका प्रयोग पर्यटकों और यात्रियों को घूमने के लिए किया जाता था।

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