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हरिद्वार के गंगा तट पर पहुंचे राजहंस, अन्य प्रवासी पक्षियों की चहचहाहट

हरिद्वार।
अंतर्राष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक एवं गुरुकुल कांगड$ी विश्वविद्यालय के पूर्व एमेरिटस प्रोफेसर एवं कुलसचिव डाक्टर दिनेश भट्ट की टीम ने बताया कि तापमान मे गिरावट होने के साथ ही  बिशनपुर कुंडी गंगा घाट में राजहंस का एक बड$ा फ्लाक पहुंच चुका है। इस फ्लाक में करीब 300 से ज्यादा राजहंस है। यह पक्षी लगभग 8600 फीट की ऊंचाई के हिमालयी क्षेत्रों को पार कर शीतकालीन प्रवास के लिए भारतीय उपमहाद्वीप मे आता है। शोधकर्ताआें ने बताया कि राजहंस नामक पक्षी को कई दफा एवरेस्ट की ऊंचाई पर भी उडते देखा गया है। प्रो. दिनेश भट्ट ने बताया की पलायन करना पक्षियों की विवशता है । शीतकाल में पक्षियों के भारत आने के कारण अधिक स्पष्ट हैं। लगभग 4 डिग्री उत्तरी अक्षांश से ऊ पर जितने भी शीत प्रदेश हैं जैसे यूरोप और केंद्रीय एवं उत्तरी एशिया वहां शीतकाल में प्राय 5 से 6 माह तक बर्फ जमी रहती है। दिन का प्रकाश सिर्फ 4 से 6 घंटे रहता है। इस प्रतिकूल मौसम में पक्षियों को वहां खाने पीने व रहने में काफी दिक्कतें होती हैं। उनका प्राकृतिक आवास बर्फ गिरने से बुरी तरह प्रभावित होता है। जिससे पक्षियों के पास पलायन के अतिरिक्त  कोई विकल्प शेष नहीं होता। यह पलायन इनके शारीरिक एवं मानसिक क्रियाआें में मौसमी परिवर्तन के असर से संभव हो पाता है। प्रो. भट्ट ने बताया कि वापसी के कारणों में मार्च में तापमान व दिनमान का बढ$ना प्रमुख है। आंतरिक कारणों में जैविक घड$ी द्वारा सुझाया गया मार्गदर्शन है। जैविक घड$ी पक्षियों के मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस क्षेत्र में स्थित बताई जाती है। जो अनेक प्रकार से पक्षियों के व्यवहार एवं प्रवास को नियंत्रित करती है। प्रवासी पक्षियों की चोंच पर जीपीएस सेंसर होने की बात भी वैज्ञानिकों को पता चली है, जिससे वह अपना मार्ग निर्धारण करते हैं। जब वह अपने देश से शीतकालीन प्रवास हेतु भारतीय उपमहाद्वीप या अन्य उष्ण प्रदेशों में जाते हैं। प्रो. भट्ट ने बताया कि अधिकांश पक्षी सेंट्रल फ्लाईवे के माध्यम से भारत पहुंचते हैं, और शीत प्रवास बिताने के बाद पुन: प्रजनन हेतु मध्य एवं उत्तरी एशिया के अपने अपने देशों में चले जाते हैं। इस वर्ष अभी तक केवल 12  प्रकार के प्रवासी पक्षियों की प्रजातियां गंगा तटो पर विराजमान है जबकि अन्य वर्षों में यह संख्या 2२ -23 प्रजातियां तक पहुंच जाती थी। संभवत ग्लोबल वार्मिंग या क्लाइमेट चेंज जैसे पर्यावरणीय प्रभाव के कारण उनकी प्रजातियों की संख्या में कमी आई है किंतु सुखद आश्चर्य है की राजहंस विगत कई वर्षों की तुलना में इस बार सर्वाधिक संख्या में पहुंचे हैं। आने वाले पक्षियों में राजहंस के अलावा एशियाई विजन, मलाड , गल्र्स, रिवर  लिपविंग, स्टिल्ट, कोरमोरेंट ,बड$े व मिडिल एग रेट इत्यादि है।
भारत में मंगोलिया, कजाकिस्तान, चीन, नेपाल एवं भूटान से हिमालय की पर्वत श्रृंखलाआें को पार कर राजहंस आते हैं। उत्तराखंड में आने वाले राजहंस मुख्यत: कजाकिस्तान से आते हैं । उत्तराखंड संस्कत विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डा. विनय सेठी ने बताया कि यह कौतूहल का विषय है कि यह पक्षी हिमालय की ऊंचाई, जहां आक्सीजन की उपलब्धता भी काफी कम होती है, उस क्षेत्र को सफलता पूर्वक पार करके हिंदुस्तान की सरजमीं पर अपने शीतकालीन प्रवास पर आता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पर्वत श्रृंखलाआें को पार करते समय यह पक्षी अपने हीमोग्लोबिन की संरचना में परिवर्तन कर आक्सीजन की मांग को कम कर लेता है। कोरोना काल  के बाद इस पक्षी पर शोध करने हेतु वैज्ञानिक लालायित है कि कैसे यह पक्षी कम आक्सीजन में भी जिंदा रह जाता है और हिमालय की ऊंची शिखर को पार कर जाता है। प्रो. भट्ट की शोध टीम के छात्र आशीष कुमार आर्य ने बताया कि राजहंस पहली बार इतनी बडी तादाद मे हरिद्वार के बिशनपुर कुंडी गांव के गंगा तटों पर पहुंचा है। पूर्व में राजहंस एवं अन्य पक्षी जैसे सुर्खाब, कोरमोरेंट , मलाड पक्षी भीमगोडा  बैराज व मिश्रपुर गांव के पास के गंगा तट पर भी मिलता था, किंतु मनुष्यों की आवाजाही एवं गंगा में खनन होने के कारण इन्होंने अपना स्थान बदल दिया है। शोधार्थी आशीष कुमार ने बताया कि राजहंस पूर्ण रूप से शाकाहारी पक्षी है जो गंगा एवं  उसके किनारे के तट पर  उगने वाली वेजिटेशन पर निर्भर करता है। प्रो. भट्ट की टीम में आशीष आर्य, रेखा एवं शिप्रा आदि शोधार्थी कार्य कर रहे हैं ।

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