रिखणीखाल व नैनीडांडा के बाघ प्रभावित क्षेत्र में बीती 17 अप्रैल से बेपटरी हुई जिंदगी एक बार फिर पटरी पर लौटने लगी है। क्षेत्र में गुलदार भले ही बड़ी तादाद में नजर आ रहे हों। लेकिन, बाघ की दहशत करीब-करीब खत्म हो चली है। हालांकि, कुछ गांवों में ग्रामीण बाघ दिखने की बात कर रहे हैं। लेकिन, वन विभाग इसे इनकार कर रहा है। बताते चलें कि 13 अप्रैल को ग्राम डल्ला व 15 अप्रैल को ग्राम भैड़गांव (सिमली) में बाघ ने दो बुजुर्गों को निवाला बना दिया। गढ़वाल वन प्रभाग के साथ ही कालागढ़ टाइगर रिजर्व फारेस्ट वन प्रभाग और लैंसडौन वन प्रभाग की टीमों ने क्षेत्र में मोर्चा संभाल दिया।
जिला प्रशासन ने दिए विद्यालय खोलने के निर्देश
हालात की गंभीरता को देखते हुए जिला प्रशासन ने बाघ प्रभावित 24 गांवों में रात्रि कर्फ्यू लगाने के साथ ही इन क्षेत्रों के तमाम विद्यालयों में अग्रिम आदेशों तक अवकाश घोषित कर दिया। इस बीच, 26 अप्रैल की शाम गढ़वाल वन प्रभाग के डीएफओ स्वप्निल अनिरूद्ध के दिशा-निर्देशन में ग्राम जुई में एक बाघ को ट्रैंक्यूलाइज कर दिया, जिसके बाद ग्रामीणों ने राहत की सांस ली। इसके बाद से पूरे क्षेत्र में कहीं बाघ नजर नहीं आया। नतीजा, जिला प्रशासन ने तीन मई से विद्यालयों को खोलने के निर्देश दे दिए।
सप्ताह बीतने के बाद अब विद्यालय पूर्व की भांति पूरी रंगत में आ गए हैं। शुरूआत में अभिभावक अपने पाल्यों को विद्यालय भेजने में कतरा रहे थे। लेकिन, अब स्थितियां बदल गई हैं। क्षेत्र में गुलदार लगातार नजर आ रहे हैं। लेकिन, यूं लगता है मानो आमजन ने गुलदार के साथ जीना सीख लिया है।
उप शिक्षा अधिकारी अजय चौधरी ने बताया कि अब विद्यालयों में अस्सी फीसद बच्चे अध्ययन के लिए पहुंचने लगे हैं। उन्होंने कहा कि दूरदराज से आने वाले बच्चों के अभिभावकों से अनुरोध किया गया है कि वे बच्चों को समूह में स्कूल भेजें। साथ ही स्वयं भी बच्चों के साथ आएं।