ब्लैक मैलिंग करने वाले पत्रकारो से कलंकित हो रहा हरिद्वार, सिडकुल क्षेत्र के आस पास हालात गंभीर,
आज कल पत्रकारिता जिस दौर से गुजर रही है वहाँ पत्रकार को अपना दामन बचाना उतना ही मुश्किल काम है जैसे काजल की कोठरी में रहना और बिना काजल लगे दमन साफ रखना।
हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र जहां हर दस लोगों मे से एक व्यक्ति आज स्वयं को पत्रकार बोलकर लोगों को ब्लैकमेल करता नजर आ रहा है, पत्रकारिता एक ऐसा पेशा था जिस पर समाज पूरा विश्वास करता था अधिकतर वो लोग जो पीड़ित होते थे पत्रकार के माध्यम से न्याय पाने का पूरा विश्वाश रखते थे, लेकिन दुर्भाग्य कि आज समाज का अधिकतर हिस्सा पत्रकार से भयभीत है, उसका बड़ा कारण है कि पत्रकारिता मे 50% ऐसे लोग दाखिल हो चुके है जो पत्रकारिता के नाम पर लोगों को ब्लैकमेल कर रहे है, जिस कारण आज समाज व शहर के उन तमाम वरिष्ठ व ईमानदार पत्रकारों को भी आज जनता उसी नजर से देख रही है,
सिडकुल के आस पास तो फ़र्ज़ी पत्रकारों कि मानो एक बाढ़ सी आ गई है जिनका खबरों से कोई सरोकार ही नही लेकिन उन्हें ये मालुम है कि कहाँ अवैध शराब बिक रही है, कहाँ सट्टा लगाया जाता है कहाँ अवैध खनन होता है, कहाँ गौकशी हो रही है कहाँ वैश्यवर्ती हो रही है, इन्हे खबरों के नाम पर डरा धमकाकर पैसे मिल गए तो ठीक नही तो इनकी खबर कहीं न कहीं चलना लाजमी है,या यूँ कहें कि इन लोगों का काम पत्रकारिता नही बल्कि ऐसे लोगों कि तलाश करना है जिन्हे डरा धमका कर ये अवैध वसूली कर सके,अगर आज पत्रकारिता को किसी से खतरा है तो वो सबसे बड़ा खतरा इन असामाजिक तत्वों से ही है जो समाज को भयभीत करने के साथ साथ पत्रकारिता को भी कलंकित कर रहे है,ओर हैरानी कि. बात ये है कि ये वही लोग है जिनका शिक्षा व् योग्यता का स्तर भी पत्रकारिता के लायक नही है, शहर के बहुत से पत्रकार ऐसे भी है जो महंगाई के इस दौर मे आज भी पूरी ईमानदारी से पत्रकारिता कर रहे है
जानिये समाज को कैसे गुमराह कर रहे है ये फ़र्ज़ी पत्रकार
मजे कि बात तो ये है कि ये जीतने भी ऐसे असामाजिक तत्व है जो पत्रकारिता के नाम पर क्षेत्र के लोगों को डरा धमकाकर व उनसे अवैध वसूली करके काली कमाई कर रहे है अगर कोई उनसे ये सवाल कर लेता है कि घोड़ा गाडी कार मकान कहाँ से बना लिया, क्या पत्रकारिता मे इतना वेतन मिलता है?तो यहाँ भी ये लोग हाजिर जवाब देते है कि चैनल से या अखबार से बहुत मोटा वेतन प्रतिमाह मिलता है जबकि वेतन कि सचाई क्या है ये सब जानते है पत्रकारिता के वेतन मे ये सब खरीदना तो दूर पुरे माह का पेट्रोल खर्च भी नही निकल सकता,
लेकिन लोगों को गुमराह करके वेतन बताना इसलिए जरुरी है कि इनकी काली कमाई पर प्रसाशन ओर लोग सवाल खडे न कर सके,
ऐसे ब्लैमेलर व फ़र्ज़ी पत्रकारों कि जांच क्यों नही वह भी जान लीजिये,
पुलिस व प्रसाशन ये समँझ ही नही पाता है कि पत्रकार असली है या फ़र्ज़ी जो भी शहर के वरिष्ठ पत्रकार हैं उनका प्रसाशन से रोज ही आमना सामना हो जाता है जिस कारण वे किसी परिचय के मोहताज नही, लेकिन क्षेत्र मे जो लोग पत्रकारिता के नाम पर ब्लेकमेलिंग करते घूम रहे है वे अधिकतर पुलिस प्रसाशन से दुरी बनाकर रहते है, लेकिन ज़ब भी पुलिस मुख्यालय मे कोई प्रेस होती है तो वहाँ से अपनी उपस्थिति देने के साथ साथ सामने वाली कुर्सी कब्ज़ाना नही भूलते जिससे अधिकारियों को अपने चेहरे याद करा सके, भले भी वारिष्ठ पत्रकारो को कुर्सी मिले न मिले इन्हे इस बात कि शर्म नही, अब समझ लीजिये जनता को क्या करना है ऐसे फ़र्ज़ी व ब्लेकमेलरों के साथ, ज़ब भी ये लोग आपको भयभीत करते है खबर छापने के नाम पर या चैनल मे चलाने के नाम पर आपको डराते है, तो आपको पूरा अधिकार है कि आप भी अपने मोबाइल से इनकी वीडियो बनाना आरम्भ करें, आपको अधिकार है कि आप इनसे सवाल जवाब करें, क्यों ये आपको परेशान कर रहे है क्यों आपसे पैसे मांग रहे है निडर होकर अपना काम करें, इन ब्लेकमेलरों कि वीडियो को सीधे जिले के पुलिस कप्तान,जिलाधिकारी, सूचना अधिकारी व शहर के सभी वरिष्ठ पत्रकारों को भेजें, साथ ही पुलिस कंट्रोल रूम को भी बिना डरे 112 पर सूचित करें, ऐसे असामाजिक तत्वों को सबक सिखाना जनता कि भी जिम्मेदारी है, जो पत्रकार के नाम पर पत्रकारिता के पेशे को कलंकित कर रहे है।