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रामकथा में भागवत को बताया परमहंसों की संहिता

हरिद्वार।
भरतु हंस राबिबन्स तडगा, जनमि कीन्ह गुण दोष बिभागा॥ रामायण की चौपाई सुनाते हुए रामानुज ने कहा रामचरित मानस में  भरत  एवं हनुमान परमहंस है, श्रीमद्भागवत तो परमहंसों की संहिता है। भीष्म पितामह परमहंस है, श्री शुकदेव महाराज परहंस है, जो अपनी वेदना भूलकर अपने आश्रितों के मनोरथ पूरा करे वो परमहंस है।
रामकथा के सातवें दिन आचार्य रामानुज ने कहा सद्गुरु की स्मृति बनी रहनी चाहिए, सद्गुरु मंत्र शक्ति से हमारे भीतर समाये  हुए होते है, सद्गुरु व्यापक है, परमसिंधु है , मनुष्य के रूप में भगवान है, उनका दिया हुआ मंत्र जिस दिन हमने उनसे लिया उस दिन भगवान शंकर ने हमारी स्मृति की होगी, गुरु शंकर स्वरूप होते है । हमारे पुकारने की देर है व्यापक सद्गुरु तुरंत कोई न कोई रूप अथवा विचार के रूप में प्रकट होते है , हम उन्हें छोड$ सकते है किंतु गुरुपद हमें कभी नही छोड$ता।
गुरुमंत्र की साधना करने से अंतर प्रकाश होता है, परमहंस के मार्ग का यात्री स्वयम के भीतर प्रवेश पाजाता है, समस्त वैभव उनके भीतर से प्रकट होना शुरू  हो जाते है । रामकृष्ण देव परमहंस के शिष्य स्वामी अखण्डानन्द का प्रसंग सुनाते हुए आचार्य रामानुज ने कहा कि परमहंस किस तरह सार्वभौमिक विचार रखते है। स्वामी जी ने बंगाल के अकाल पीडि$तों की एेसी सेवा करते की स्वयं के भोजन का भी विस्मरण होजाता, एेसी सेवा में ततपर होने वाला व्यक्ति परमहंस के पथ का मार्गी होता है ।
लोगो की वेदना स्पर्श होने लगे तब समझना की हम परमहंत्व के मार्ग पर है, किंतु संत हृदय किसी की वेदना नही देख सकते , करुणा प्रस्फुटित हो जब समझना की अनंत में से परमहंत्व हमारे भीतर उतर रहा है ।  करुणा की दृष्टि नए आयाम पर ले जाती है, वह नया आयाम होता है परमार्थ पथ, परमार्थ पथ पर बिल्कुल सहज होकर चलना होता है, उसी पथ पर चलते चलते प्रहन्स हमारा हाथ पकड$ लेता है । रविंद्रपुरी  ने कहा राम का जीवन मर्यादा से भरा भगवान शिव से  पार्वती कहती आप   किस की साधना करते हैं न आज तो मुझे आप बता दो, उन्होंने कहा भगवान राम की जो साकार और निराकार भी उन्होंने कहा कथा सुनने से हमारे अंदर के जो कुंभकरण, मेघनाथ है उनका शमन होता है।
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