उत्तराखंड हरिद्वार

दो दिवसीय श्री परशुराम राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी आयोजित

हरिद्वार।
सोमवार को श्री परशुराम राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के समापन अवसर पर राष्ट्रीय परशुराम परिषद के संस्थापक संरक्षक एवं उत्तर प्रदेश के मंत्री पं सुनील भराला ने कहा कि भगवान परशुराम किसी जाति विशेष के न होकर सभी के हैं। उन्होंने पीडि$तजनों की रक्षा राक्षसों से की। उन्होंने बताया कि इस संगोष्ठी में 18 राज्यों के 16 कुलपतियों तथा 36 प्रोफेसरों सहित 50 विशिष्टजनों ने हिस्सा लेकर अपने—अपने विचार व्यक्त किये। श्री परशुराम राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुये स्वामी रामभ्द्राचार्य रामानन्दाचार्य महाराज ने परशुराम पर प्रकाश डालते हुये कहा कि भगवान परशुराम का जन्म स्थल उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में गंगा के निकट है, एेसा प्रमाण भागवत में मिलता है। वे त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के यहाँ जन्मे थे, जो विष्णु के छठे अवतार हैं। पौराणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ। बताया कि महाभारत और विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम का मूल नाम राम था, किन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अ प्रदान किया तभी से उनका नाम परशुराम हो गया। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम कहलाए। वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। उनकी आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शाईंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रहार्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिशृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्या विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। संगोष्ठी को पूर्व मुख्यमंत्री  तीरथ सिंह रावत ने भी सम्बोधित किया। श्री परशुराम राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के द्वितीय दिवस का शुभारम्भ द्वीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। श्री परशुराम राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में सभी सन्तों व विशिष्टजनों ने संकल्प लिया कि गंगा तट हरिद्वार में भगवान परशुराम की प्रतिमा स्थापित की जायेगी।

 

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *