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करवा चौथ व्रत यह चार सामान आज के दिन अवश्य लाएं बना रहता है पति पत्नी के विश्वास का रिश्ता

गुरुवार, 13 अक्टूबर को पति-पत्नी का महापर्व करवा चौथ
शुक जी और माता सती की घटना में 4 बार गलत होने पर गलत होना लाये पति-पत्नी के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है-एक का विश्वास करने वाला शुक्र: – 
गर्भवती होने के लिए ये पहले करवा चौथ है। इनके rasana जो kay पहले ये व व व r व r व rurत r उनको r शुक r शुक r शुक r शुक r शुक शुक r शुक
13 अक्टूबर 2022 करवा चौथ : घर लें आएं 4 शुभ
Vapamaurों के kayar इस दिन कुछ चीजें चीजें r चीजें चीजें ruirrair ruir ruir rabraur rabana बहुत शुभ शुभ शुभ शुभ शुभ शुभ शुभ शुभ शुभ शुभ शुभ शुभ शुभ शुभ शुभ शुभ सुखी खुश रहने वाले हैं और जीवन में खुश रहने वाले हैं
शास्त्रों के अनुसार करवा चौथ को ठीक करने के लिए राइट्स की रक्षा करें।
वास्तु के अनुसार रजनीगंधा का पति-पत्नी के रिश्ते में बदलाव आया है
मोरपंख बहुत लाभकारी माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार करवा चौथ वाले दिन इसे घर लाना बहुत शुभ माना जाता है. इसे बेडरूम में दीवार पर या किसी ऐसे स्थान पर लगाएं जहां पति-पत्नी की नजर पड़ सके.
व्रत पर लाल चूड़ियां खरीदना सौभाग्य में वृद्धि करता है. चूड़ियां गोल होने के कारण बुध और चंद्रमा का प्रतीक हैं. कांच की चूड़ियों को पवित्र और शुभ माना जाता है.कहा जाता है कि कांच की चूड़ियां पहनने और उससे आने वाली आवाज से आसपास की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है।
 
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र ने बताया कि 2 अक्टूबर से 20 नवंबर तक शुक्र अस्त रहेगा। मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ के हवाले से कहते हैं कि शुक्र अस्त होने पर मांगलिक कामों के साथ सौभाग्य पर्व यानी करवा चौथ व्रत की शुरुआत नहीं की जा सकती। इसलिए जिन महिलाओं के लिए ये पहला करवा चौथ है उन्हें अगले साल से ये व्रत शुरू करना चाहिए। इनके अलावा जो महिलाएं पहले से ये व्रत कर रही हैं उनको शुक्र अस्त का दोष नहीं लगेगा।
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी का कहना है कि इस बार करवा चौथ पर शुक्र अस्त होने से नए पहले व्रत का संकल्प नहीं लिया जा सकता है। लेकिन जो महिलाएं पहले से ये व्रत कर रही हैं उन्हें कोई दोष नहीं लगेगा। बल्कि इस बार गुरु अपनी ही राशि में मौजूद है और गुरुवार को ही ये व्रत रहेगा। इसलिए ये संयोग इस व्रत के शुभ फल को और बढ़ा देगा।
तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्णकुमार भार्गव बताते हैं कि शुक्र ग्रह के अस्त रहते हुए नए व्रत की शुरुआत और अंत यानी उद्यापन नहीं किया जाता है। ऐसा ज्योतिष ग्रंथों में लिखा हुआ है। इसलिए इस साल पहला करवा चौथ व्रत नहीं रखना चाहिए।
करवा चौथ पर क्या न खरीदें:
सुहागिन महिलाओं को करवा चौथ के व्रत वाले दिन सफेद रंग के कपड़े या इस रंग से जुड़ी कोई भी श्रृंगार की चीजें न खरीदें। सफेद रंग वस्त्र या चूड़ी भी पूजा में शामिल न करें।
व्रती को इस दिन धार वाली चीजें जैसे चाकू, कैंची, सुई भी नहीं खरीदना चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना जाता है।
पति-पत्नी का महापर्व करवा चौथ 13 अक्टूबर को:पूजा-पाठ और व्रत-उपवास के साथ ही जीवन साथी पर भरोसा भी करें, भरोसे के बिना ये रिश्ता टिक नहीं पाता है।
13 अक्टूबर को पति-पत्नी का महापर्व करवा चौथ है। ये व्रत जीवन साथी के लिए समर्पण, प्रेम और त्याग का भाव दिखाता है। महिलाएं पति के सुखी जीवन, सौभाग्य, अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए दिनभर निराहार और निर्जल रहती हैं। इस रिश्ते में जब तक एक-दूसरे के बीच विश्वास है, तब तक प्रेम बना रहता है। अगर जीवन साथी पर अविश्वास का भाव जाग जाता है तो ये रिश्ता टिक नहीं पाता है। ये बात हम भगवान शिव और माता सती की कहानी से समझ सकते हैं।
ये है भगवान शिव जी और माता सती की कहानी
रामायण का प्रसंग है। एक दिन शिव जी ने सती से कहा कि मैं रामकथा सुनना चाहता हूं। आप भी मेरे साथ अगस्त्य मुनि के आश्रम चलेंगी तो अच्छा रहेगा।
 
दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती को वैसे तो बहुत विद्वान थीं, लेकिन उन्हें कथा सुनना ज्यादा पसंद नहीं था। देवी विद्वान थीं तो हर एक काम तर्क के साथ करती थीं। जब शिव जी ने रामकथा सुनने की बात कही तो देवी सती भी पति की इच्छा का मान रखते हुए साथ चल दीं।
 
उस समय देवी सीता का हरण हो चुका था और श्रीराम लक्ष्मण के साथ सीता की खोज कर रहे थे। दूसरी ओर, शिव जी और देवी सती उन्हीं राम जी की कथा सुनकर लौट रहे थे। तभी रास्ते में उन्हें श्रीराम दुखी अवस्था में दिखाई दिए।
 
शिव जी ने जैसे ही राम को देखा तो दूर से प्रणाम किया और देवी सती से भी प्रणाम करने के लिए कहा। देवी सती को ये बात समझ नहीं आई। शिव जी जिस राम को भगवान मानते हैं, वे दुखी हैं और भटक रहे हैं।
 
सती ने शिव जी के कहा कि ये भगवान कैसे हो सकते हैं, ये तो दुखी हैं, पत्नी के दुख में रो रहे हैं।
 
शिव जी ने समझाया कि ये सब राम जी की लीला है। इन पर संदेह न करें।
 
सती तर्क को महत्व देती थीं तो उन्हें ये बात सही नहीं लगी। देवी सती ने श्रीराम की परीक्षा लेने का मन बना लिया। शिव जी तो कैलाश पर्वत लौट गए, लेकिन सती सीता का रूप धारण करके श्रीराम के सामने पहुंच गईं।
 
श्रीराम ने जैसे ही देवी सती को देखा तो प्रणाम किया और कहा कि देवी आप अकेली यहां कैसे आई हैं, महादेव कहां हैं? ये बात सुनते ही सती को समझ आ गया कि श्रीराम भगवान ही हैं।
 
वहां से सती चुपचाप कैलाश लौट आईं। शिव जी ने सती को देखा तो पूछा कि क्या आपने राम की परीक्षा ली?
 
उस समय सती ने शिव जी से झूठ बोल दिया कि मैंने तो परीक्षा नहीं ली, मैं भी राम जी को प्रणाम करके लौट आई हूं।
 
शिव जी सती के स्वभाव से ऐसा ही होता है। शिव जी ने ध्यान रखें और उनका पालन करें। गलत होने के बाद जी ने कहा कि आपने झूठ बोला था, मेरेशु की राम परीक्षा सीता माता का रूप में गलत तरीके से लिखा हुआ है, ये आप ने अच्छा लिखा है। मैं
 
घटना के बाद से ही शिव जी और सती जीवन व्यतीत करने वाला था।
साभार चंद्रशेखर जोशी

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