हरिद्वार।
वरिष्ठ पत्रकार रत्नमणी डोभाल ने कहा कि भाजपा और कांग्रेस की नीतियों में कोई अंतर नहीं है। वर्ष 1930 में केंद्र की भाजपा सरकार ने बिजली क्षेत्र को निजी कंपनियों के हवाले करने के मकसद से बिजली बिल 2003 लाई थी। इस बिल में बिजली बोर्ड को तीन हिस्सों में विभाजित करने का प्रावधान किया गया था। उत्पादन, वितरण और संरक्षण इन प्रावधानों का फायदा उठाकर अधिकांश राज्य सरकारों ने बिजली बोर्ड को तीन भागों में बांट दिया। कई राज्यों से दिल्ली, उड़ीसा आदि ने बिजली क्षेत्र को टाटा, रिलायंस आदि को दिया।
महाराष्ट्र सरकार ने बिजली उत्पादन अमेरिका की एनरॉन कंपनी को बिजली उत्पादन का लाइसेंस दे दिया। टाटा, रिलायंस और एनरॉन कुछ समय बाद काम छोड़कर भाग गई। उड़ीसा सरकार ने बिजली उत्पादन, वितरण आदि का कार्य दोबारा सरकारी कंपनी को दिया। बिजली क्षेत्र को प्राइवेट के हवाले करने का प्रयोग बुरी तरह फेल हो चुका है। इसके बावजूद 2014 में केंद्र में भाजपा की नरेंद्र मोदी नेतृत्व की सरकार बनने के बाद वर्ष 2014 से 2022 तक भाजपा सरकार बिजली क्षेत्र का निजीकरण करने के लिए पांच बार लोकसभा में बिल पेश कर चुकी है और 2022 में उसने दोबारा यह बिल लोकसभा में पेश किया हुआ है। भाजपा सरकार ऊर्जा व बिजली क्षेत्र को प्राइवेट कंपनियों के हवाले करने के लिए पूरी तरह से मन बना चुकी है। परंतु बिजली कर्मचारियों को उपभोक्ताओं के संयुक्त आंदोलन के कारण भाजपा सरकार अपने मनसूबे में सफल नहीं हो पा रही है। भाजपा सरकार अभी तक और खतरनाक नीति ला रही है। जिससे बिजली क्षेत्र स्वयं प्राइवेट कंपनियों के पास चला जाएगा, बिजली बोर्ड का अस्तित्व भी खतरे में पड$ जाएगा। लाखों कर्मचारियों की नौकरी चली जाएगी और सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन मिलने पर भी प्रश्न चिन्ह लगेगा। यह खतरनाक खेल है पूरे देश में बिजली के स्मार्ट मीटर (प्रीपेड मीटर) लगाने का जिससे बिजली उपभोक्ता बिजली कर्मचारियो और पेंशन पर विनाशकारी प्रभाव पड$ेगा।
उत्तराखंड भाजपा की धामी सरकार ने कई क्षेत्रों में बिजली बोर्ड को स्मार्ट मीटर (प्रीपेड मीटर) लगाने के आदेश दे दिए हैं। जिस कारण आप गांव व शहरों में गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों को सब्सिडी पर बिजली नहीं मिलेगी।

















































