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देवी पार्वती के सिद्धा स्वरूप की एक हजार पुरानी प्रतिमा मिली

झारखंड-बंगाल की सीमा पर स्थित महेशपुर राज प्रखंड के श्मशान क्षेत्र के निकट  बांसलोई नदी के कुलबोना घाट में बालू की खुदाई के दौरान खड़ी मुद्रा में शाक्त देवी की एक अत्यंत सुघड़ कलात्मक प्रतिमा मिली है जो अपनी मूर्तिकला की विशिष्टताओं के कारण आम जनों के साथ इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के आकर्षण का केंद्र बन गई है। करीब चार फीट ऊंची विशिष्ट शैली की जटा-मुकुट धारण किये ब्लैक बैसाल्ट पत्थर से निर्मित कमल पद्म पर आसीन इस प्रतिमा की पहचान विशेषज्ञों ने देवी पार्वती के सिद्धा स्वरूप में की जो एक हजार पुरानी बताई जा रही है।
हाथों में शिवलिंग, त्रिशूल और घट लिये हुए चार भुजाओं वाली यह मूर्ति प्रथम दृष्टया शैव मत से संबंधित देवी पार्वती अथवा किसी शाक्त देवी की लग रही थी। किंतु शास्त्रों एवं विभिन्न पुराणों में वर्णित देवी पार्वती के एक हजार स्वरूपों से निश्चित रूप से निर्धारित करना कि यह किस देवी की है, कठिन प्रतीत हो रहा था। किंतु प्रतिमा की सूक्ष्म रूप से मीमांसा करने के पश्चात कोलकाता विश्वविद्यालय  के पुरातत्व विभाग की पूर्व अध्यक्ष तथा जानी-मानी मूर्ति-विज्ञानी प्रोफेसर दुर्गा बसु और कोलकाता के ही मौलाना अबुल कलाम आजाद यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के प्राध्यापक, पुराविद् अरबिंदो सिन्हा राय, जो झारखंड और बिहार के पुरातात्विक सर्वेक्षणों से निकटता से जुड़े रहे हैं, के अनुसार यह मूर्ति देवी पार्वती के एक स्वरूप सिद्धा की है। इस संबंध में मूर्ति विज्ञानी प्रो.बसु ने बताया कि सिद्धा देवी पार्वती के महत्वपूर्ण रूपों में एक है, जब उन्होंने दक्षपुत्री सती के रूप में यज्ञ-कुंड में अपना शरीर त्यागने के पश्चात् हिमालय-पुत्री के रूप में जन्म लेकर भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने हेतु कठिन तपस्या कर सिद्धि लाभ किया था। प्रो. बसु बताती हैं कि देवी पार्वती के इस तपस्विनी सिद्धा रुप का उल्लेख अग्नि पुराण सहित अन्य ग्रंथों में किया गया है।

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