हरिद्वार/ संजना राय।
गर्मी बढ़ने के साथ ही जंगल में सूखे पीरुल के कारण बना बनी की संभावना बढ़ जाती है जिसके चलते वन विभाग और स्थानीय जनता को इससे बचाव के नए-नए तरीके खोजने पड़ते हैं इन्हीं में से एक तरीके ने और दिवस की खोज की है यह अब हर वर्ष 1 अप्रैल से मनाया जाता है इस बार दूसरा दिवस मनाया जा रहा है अल्मोड़ा के जिला अधिकारी की पहल से वाढदिवस की शुरुआत हुई है।
वनाग्नि दुर्घटनाओं को रोकने के प्रयास करने की जरूरत ने ओण दिवस मनाने का निर्णय है। वनाग्नि दुर्घटनाओं के लिए बहुत से कारण उत्तरदाई हैं मगर इन कारणों में से सबसे ज्यादा योगदान ओण/आडा़/केडा़ जलाने की परंपरा का है। खरीफ की फसलों के लिए खेत तैयार करते समय महिलाओं द्वारा खेतों में, मेड़ पर उग आई झाड़ियों, खरपतवारों को काटकर, सुखाकर जलाया जाता है जिसे प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में ओण/आडा़/केडा़ जलाना कहा जाता है। आमतौर पर महिलाएं इस काम में सतर्कता रखती हैं मगर लापरवाही, जल्दबाजी में ओण के ढेर को जलाने के बाद अच्छी तरह बुझाने का काम न होने से हवाओं और घास, पीरूल का सहारा लेकर आग निकटवर्ती वन पंचायत, सिविल, आरक्षित वन क्षेत्र में प्रवेश कर बड़ी अग्नि दुर्घटनाओं को जन्म देती हैं। जंगलों में आग लगने के 90% मामलों के पीछे ओण जलाने की घटनाओं में असावधानी पायी गई है। एक बार आग आरंभ हो गई तो उस पर नियंत्रण पाने में बहुत समय और संसाधन लगाने पड़ते हैं ऐसे में यह उचित होगा कि आग लगे ही ना इस बात के प्रयास किए जायें इस उद्देश्य को लेकर ओण जलाने की परंपरा को समयबद्ध और व्यवस्थित करने हेतु पिछले वर्ष ग्राम सभा मटीला/ सूरी में 1 अप्रैल को प्रथम ओण दिवस का आयोजन किया गया। जिसके अच्छे परिणामों को देखते हुए जिलाधिकारी अल्मोड़ा ने अल्मोड़ा जिले में प्रतिवर्ष एक अप्रैल को ओण दिवस मनाने के आदेश दिए थे और इस वर्ष दूसरा ओण दिवस मनाया जा रहा हैं। ओण दिवस जंगलों को आग से सुरक्षित रखने का निरोधात्मक विचार है जिसमें सभी ग्राम वासियों से अनुरोध किया गया है कि वो प्रत्येक वर्ष ओण जलाने की कार्रवाई 31 मार्च से पहले पूरी कर लें ताकि अप्रैल, मई और जून के महीनों में जब चीड़ में पतझड़ होने के कारण जंगलों में भारी मात्रा में पीरूल की पत्तियों जमा हो जाती हैं तापमान में वृद्धि होने तथा तेज हवाओं के कारण जंगल आग के प्रति बेहद संवेदनशील हो जाते हैं,उस समय जंगलों को आग से सुरक्षित रखा जा सके। ओण दिवस का उद्देश्य जंगलों को आग से बचाकर उत्तराखंड के जल स्त्रोतों, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित एवं संवर्धित करना है।