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अब पटवारी नहीं करेंगे अपराधिक घटनाओ की जांच, समाप्त होगी राजस्व पुलिस व्यवस्था

देहरादून।
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्व पुलिस प्रणाली को समाप्त करने के उत्तराखंड हाई कोर्ट के निर्देश को चुनौती देने वाली उत्तराखंड राज्य सरकार की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका को बंद कर दिया है राज्य के पहाड़ी भागों में राजस्व विभाग के सिविल अधिकारियों के पास पुलिस की शक्तियां और कार्य हैं इस प्रकार राजस्व अधिकारी अपराधियों की गिरफ्तारी और जांच जैसे पुलिस के कार्य कर सकते थे 1861 में पुलिस एक्ट लागू किया गया था मैदानी इलाकों को तो पुलिसिया व्यवस्था ने अपने कब्जे में ले लिया। लेकिन कठिन पहाड़ी इलाको को इस व्यवस्था से पहले प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट पुलिस द्वारा की जानी चाहिए। पहाड़ी क्षेत्रों दूर रखा गया। साल 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद भी राज्य ने राजस्व पुलिस प्रणाली को जारी रखा गया। राजस्व पुलिस का मामला जब हाईकोर्ट पहुंचा तो 2018 में राजस्व पुलिस की व्यवस्था को पूरी तरह खत्म करने का आदेश दिया था। जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस आलोक सिंह की खंडपीठ ने छह महीने के भीतर राजस्व पुलिस की व्यवस्था समाप्त कर सभी इलाकों को प्रदेश पुलिस के क्षेत्राधिकार में लाने का आदेश दिया था। आदेश के इतने साल बाद भी उस दिशा में कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई है। अब अंकिता हत्याकांड सामने आने और जनता के दबाव को देखते हुए धामी सरकार ने प्रदेश सरकार ने पहाड़ी क्षेत्रों में चरणबद्ध तरीके से पुलिस थाने व चौकियाँ खोलने का फैसला लिया है। पहले चरण में पर्यटन गतिविधि वाले क्षेत्रों को पुलिस के अधिकार क्षेत्र में लाया जाएगा।
हत्या के मामले में एक आपराधिक अपील पर विचार करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस प्रणाली के परिणाम स्वरूप और वैज्ञानिक जांच हो रही है जिससे सही से न्याय नहीं हो पा रहा है उच्चतम न्यायालय के जस्टिस राजीव शर्मा की खंडपीठ और जस्टिस आलोक सिंह ने कहा पहाड़ी क्षेत्रों में भी जांच केवल विधिवत प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों द्वारा आधुनिक तकनीकों से अच्छी तरह वाकिफ हैं। राजस्व पुलिस द्वारा गंभीर अपराधों की जांच से कानून और व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होती है। जांच केवल नियमित के लोगों को नियमित पुलिस द्वारा सुरक्षा और सेवा प्रदान करने की आवश्यकता है। राजस्व पुलिस अधिकारियों द्वारा अपराध का पता लगाना और सुरक्षा दयनीय अवस्था में है। हाईकोर्ट के निर्देशों से व्यथित होकर राज्य ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। तब सरकार का तर्क था कि राजस्व पुलिस व्यवस्था उत्तराखंड की अनूठी व्यवस्था है। पहाड़ में अपराध कम हैं इसलिए पुलिस की वैसी जरूरत नहीं है। बहरहाल, जब मामला उच्चतम न्यायालय यूयू ललित और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ के सामने आया तो उप महाधिवक्ता जतिंदर कुमार सेठी ने कैबिनेट के फैसले के बारे में बयान को शामिल करते हुए एक नोट प्रस्तुत किया। इसे रिकॉर्ड करते हुए अदालत ने कानून के सभी सवालों को खुला छोड़ते हुए एसएलपी का निपटारा कर दिया।
क्या था उच्चन्यायालय का आदेश
। उत्तराखंड राज्य के कई हिस्सों में प्रचलित राजस्व पुलिस प्रणाली पुलिस की एक सदी से अधिक पुरानी प्रथा को आज से छह महीने के भीतर समाप्त करने का आदेश दिया गया। इस बीच, राज्य सरकार पूरे राज्य में नियमित पुलिस को लागू करेगी। राज्य सरकार को सीआरपीसी की धारा 2(एस) के तहत पर्याप्त संख्या में पुलिस थाने खोलने का भी निर्देश दिया गया है। आज से छह महीने के भीतर नियमित पुलिस द्वारा पुलिस व्यवस्था को मजबूत करने के लिए उत्तराखंड पुलिस अधिनियम, 2007 की धारा 7 के साथ पढ़ा गया।
 
राज्य सरकार को यह भी सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया जाता है कि प्रत्येक सर्कल में एक प्रभारी अधिकारी को में दे पुलिस स्टेशन हो, जो उप-निरीक्षक के पद से नीचे नहीं होने
 
पूरे उत्तराखंड राज्य में प्राथमिकी दर्ज करना, जांच करना और चालान करना आदि भी बच् के प्रवधानों के अनुसार केवल नियमित पुलिस द्वारा किया जाएगा, न कि पटवारियों द्वारा)
 
राज्य सरकार को अधिनियम, 2007 की धारा 15 के अनुसार पुलिस प्रशिक्षण संस्थान खोलने का भी निर्देश दिया जाता है, जिसमें राज्य पुलिस प्रशिक्षण संस्थान पुलिस प्रशिक्षण त पुलिस अकादमी सहित अन्य प्रशिक्षण संस्थान शामिल हैं, ताकि सेवा संस्कृति को बढ़ावा दिया जा सके।
 
राज्य सरकार को अधिनियम, 2007 को धारा 16 के अनुसार, आज से छह महीने के भीतर पूरे उत्तराखंड राज्य में पुलिस और अपराधों से संबंधित मामलों में अनुसंधान करने के लिए पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो स्थापित करने का भी निर्देश दिया जाता है।

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