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पतंजलि विवि में मृदा स्वास्थ्य परीक्षण एवं प्रबंधन, गुणवत्तापूर्ण जड़ी —बूटियों की सतत खेती पर संगोष्ठी आयोजित

हरिद्वार।
पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार में आयुष मंत्रालय, भारत सरकार, पतंजलि आर्गेनिक रिसर्च इंस्टीट्यूट, आरसीएससीएनआर-1, और नाबार्ड के सहयोग से दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। इस कार्यशाला का विषय था ’मृदा स्वास्थ्य परीक्षण एवं प्रबंधन द्वारा गुणवत्तापूर्ण जड़ी—बूटियों की सतत खेती’, जो ‘स्वस्थ धरा’ योजना के अंतर्गत आयोजित की गई।
कार्यक्रम का उद्घाटन पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बालकृष्ण महाराज ने दीप प्रज्वलन एवं धन्वंतरि वंदना के साथ किया। स्वागत भाषण मृदा भरुवा एग्री साइंस के निदेशक डा. केएन शर्मा द्वारा दिया गया। इस अवसर पर ‘स्वस्थ धरा’ एवं ’‘मेडिसिनल प्लांट्स/ इनोवेशन जनरेशन आफ फाइटोमेडिसिन एंड रिवाइविंग इंडस्ट्रीज पुस्तकों का लोकार्पण भी हुआ।
मुख्य अतिथि नाबार्ड के अध्यक्ष शाजी केवी ने कहा कि नाबार्ड का प्रमुख उद्देश्य देश में टिकाऊ  कृषि एवं ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना है। उन्होंने बताया कि नाबार्ड ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने हेतु कृषि, लघु उद्योग, कुटीर शिल्प और ग्रामोद्योग को ऋण एवं सहयोग प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा कि पतंजलि जैसी संस्थाएँ नाबार्ड के साथ मिलकर देश में जैविक एवं सतत कृषि को नई दिशा दे सकती हैं। श्री शाजी ने कहा कि देश के विकसित भारत 2२७ के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यह वर्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि पतंजलि किसानों की आय बढ़ाने, जैविक खेती को प्रोत्साहित करने और प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को अपनाने पर कार्य कर रहा है।
इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण महाराज ने कहा कि फसल की सुरक्षा से ही मानव स्वास्थ्य की रक्षा संभव है। अब समय आ गया है कि हम अपनी मिट्टी को उसके मूल स्वरूप में लौटाएँ और ‘मूल की भूल’ को सुधारें। उन्होंने बताया कि पतंजलि की स्वदेशी तकनीक से निर्मित धरती का डाक्टर मशीन मृदा परीक्षण में क्रांतिकारी सिद्ध हो रही है। यह मशीन कुछ ही मिनटों में मिट्टी के पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, पीएच, जैविक कार्बन और विद्युत चालकता की सटीक जानकारी देती है।
कार्यशाला में देशभर के कृषि वैज्ञानिकों, मृदा विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और किसानों ने भाग लिया। इस मंच पर ’मृदा प्रबंधन, औषधीय पौधों की गुणवत्ता सुधार, और सतत कृषि तकनीकों’ पर विचार-विमर्श किया गया। कहा कि सार्वभौमिक और प्राकृतिक संपदा को पुनर्जीवित करना आज की आवश्यकता है। उन्होंने मृदा सुधार को केवल कृषि नहीं बल्कि ’स्वस्थ धरा, स्वस्थ मानवता’ का आधार बताया।

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