श्रद्धालुओ को सुनाया देवी कालरात्री का महात्म्य
हरिद्वार।
श्री सनातन ज्ञानपीठ शिव मंदिर समिति भेल सेक्टर 1 में चल रही श्रीमद् देवी भागवत कथा के सप्तम दिवस भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शा ी ने बताया की श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। संसार में काल का नाश करने वाली देवी कालरात्री ही है। भक्तों द्वारा इनकी पूजा के उपरांत उसके सभी दुख, संताप भगवती हर लेती है। दुश्मनों का नाश करती है तथा मनोवांछित फल प्रदान कर उपासक को संतुष्ट करती हैं। दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की भांति काला है, बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की भांति चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड की तरह गोल हैं, जिनमें से बिजली की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। इनकी नासिका से श्वास, नि:श्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। इनका वाहन ‘गर्दभ’ (गधा) है। दाहिने ऊ पर का हाथ वरद मुद्रा में सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है।
बायीं आेर के ऊ पर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में खड्ग है। मां का यह स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है किन्तु सदैव शुभ फलदायक है। अत: भक्तों को इनसे भयभीत नहीं होना चाहिए । दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सह ारचक्र में अवस्थित होता है। साधक के लिए सभी स्द्धिियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णत मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है, उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह अधिकारी होता है, उसकी समस्त विघ्न बाधाआें और पापों का नाश हो जाता है और उसे अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है।
मधु कैटभ नामक महापराक्रमी असुर से जीवन की रक्षा हेतु भगवान विष्णु को निंद्रा से जगाने के लिए ब्रह्मा जी ने इसी मंत्र से मां की स्तुति की थी। यह देवी काल रात्रि ही महामाया हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा हैं$ इन्होंने ही सृष्टि को एक दूसरे से जोड$ रखा है। सप्तम दिवस की कथा के दौरान ब्रिजेश शर्मा तथा मुख्य यजमान आलोक शुक्ला व अंजू शुक्ला, राकेश मालवीय,आदित्य गहलोत,तेज प्रकाश,दिलीप गुप्ता,दिनेश उपाध्याय, विजय,अनिल चौहान,जय प्रकाश, कुसुम गेरा,अलका शर्मा,भावना गहलोत,सरला,पुष्पा,कौशल्या, अन्नपूर्णा,अर्चना उपाध्याय,सृष्टि आदि उपस्थित रहे।
श्री सनातन ज्ञानपीठ शिव मंदिर समिति भेल सेक्टर 1 में चल रही श्रीमद् देवी भागवत कथा के सप्तम दिवस भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शा ी ने बताया की श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। संसार में काल का नाश करने वाली देवी कालरात्री ही है। भक्तों द्वारा इनकी पूजा के उपरांत उसके सभी दुख, संताप भगवती हर लेती है। दुश्मनों का नाश करती है तथा मनोवांछित फल प्रदान कर उपासक को संतुष्ट करती हैं। दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की भांति काला है, बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की भांति चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड की तरह गोल हैं, जिनमें से बिजली की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। इनकी नासिका से श्वास, नि:श्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। इनका वाहन ‘गर्दभ’ (गधा) है। दाहिने ऊ पर का हाथ वरद मुद्रा में सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है।
बायीं आेर के ऊ पर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में खड्ग है। मां का यह स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है किन्तु सदैव शुभ फलदायक है। अत: भक्तों को इनसे भयभीत नहीं होना चाहिए । दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सह ारचक्र में अवस्थित होता है। साधक के लिए सभी स्द्धिियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णत मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है, उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह अधिकारी होता है, उसकी समस्त विघ्न बाधाआें और पापों का नाश हो जाता है और उसे अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है।
मधु कैटभ नामक महापराक्रमी असुर से जीवन की रक्षा हेतु भगवान विष्णु को निंद्रा से जगाने के लिए ब्रह्मा जी ने इसी मंत्र से मां की स्तुति की थी। यह देवी काल रात्रि ही महामाया हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा हैं$ इन्होंने ही सृष्टि को एक दूसरे से जोड$ रखा है। सप्तम दिवस की कथा के दौरान ब्रिजेश शर्मा तथा मुख्य यजमान आलोक शुक्ला व अंजू शुक्ला, राकेश मालवीय,आदित्य गहलोत,तेज प्रकाश,दिलीप गुप्ता,दिनेश उपाध्याय, विजय,अनिल चौहान,जय प्रकाश, कुसुम गेरा,अलका शर्मा,भावना गहलोत,सरला,पुष्पा,कौशल्या, अन्नपूर्णा,अर्चना उपाध्याय,सृष्टि आदि उपस्थित रहे।